पाठ 1 दो बैलों की कथा
- सरल-सीधा और अत्यधिक सहनशील होना पाप है। बहुत सीधे इनसान को मूर्ख या ‘गधा’ कहा जाता है।
- इसलिए मनुष्य को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए।
- आज़ादी बहुत बड़ा मूल्य है। इसे पाने के लिए मनुष्य को बड़े-से-बड़ा कष्ट उठाने को तैयार रहना चाहिए।
- समाज के सुखी-संपन्न लोगों को भी आजादी की लड़ाई में योगदान देना चाहिए।
- पहली घटना-दोनों एक-साथ गाड़ी में जोते जाते थे तो यह कोशिश करते थे कि गाड़ी का अधिक भार दूसरे साथी के कंधे पर न आकर उसके अपने कंधे पर आए।
- दूसरी घटना-गया ने हीरा के नाक पर डंडा मारा तो मोती से सहा न गया। वह हल, रस्सी, जुआ, जोत सब लेकर भाग पड़ा। उससे हीरा का कष्ट देखा न गया।
- तीसरी घटना-जब मटर के खेत में मटर खाकर दोनों मस्त हो रहे तो वे सींग मिलाकर एक-दूसरे को ठेलने लगे। अचानक मोती को लगा कि हीरा क्रोध में आ गया है तो वह पीछे हट गया। उसने दोस्ती को दुश्मनी में बदलने से रोक लिया।
- चौथी घटना-जब उनके सामने विशालकाय साँड आ खड़ा हुआ तो उन्होंने योजनापूर्वक एक-दूसरे का साथ देते हुए उसका मुकाबला किया। साँड एक पर चोट करता तो दूसरा उसकी देह में अपने नुकीले सींग चुभा देता। आखिरकार साँड बेदम होकर गिर पड़ा।
- पाँचवीं घटना-मोती मटर के खेत में मटर खाते-खाते पकड़ा गया। हीरा उसे अकेला विपत्ति में देखकर वापस आ गया। वह भी मोती के साथ पकड़ा गया।
- छठी घटना-काँजीहौस में हीरा ने दीवार तोड़ डाली। उसे रस्सियों से बाँध दिया गया। इस पर मोती ने उसका साथ दिया। पहले तो उसने बाड़े की दीवार तोड़कर हीरा का अधूरा काम पूरा किया, फिर उसका साथ देने के लिए उसी के साथ बँध गया।
(ख) हीरा और मोती गया के घर बँधे हुए थे। गया ने उनके साथ अपमानपूर्ण व्यवहार किया था। इसलिए वे क्षुब्ध थे। परंतु तभी एक नन्हीं लड़की ने आकर उन्हें एक रोटी ला दी। उस रोटी से उनका पेट तो नहीं भर सकता था। परंतु उसे खाकर उनका हृदय जरूर तृप्त हो गया। उन्होंने बालिका के प्रेम का अनुभव कर लिया और प्रसन्न हो उठे।
रचना और अभिव्यक्ति
भाषा अध्ययन
- दोनों साथ उठते, साथ नाँद में मुँह डालते और रथ ही बैठते थे।
- एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।
- ज्यादा-से-ज्यादा मेरी ही गरदन पर रहे।
- यही उनका आधार था।
- कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है।
भी-
- कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है।
- उसके चेहरे पर असंतोष की छाया भी न दिखाई देती।
- गधे का एक छोटा भाई और भी है।
- एक मुँह हटाता तो दूसरा भी हटा लेता था।
- कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है।
पाठ 2 ल्हासा की ओर
- उसका घोड़ा बहुत सुस्त था।
- वह रास्ता भटककर एक-डेढ़ मील गलत रास्ते पर चला गया था। उसे वहाँ से वापस आना पड़ा।
- सुमति मिलसार और हँस–मुख व्यक्ति थे जिनकी जान-पहचान का दायरा विस्तृत था।
- सुमति अपने यजमानों को बोध गया से लाए कपड़े के गंडे बनाकर दिया करते थे और उनसे दक्षिणा लेते थे।
- सुमति लोगों की आस्था का अनुचित लाभ उठाते थे पर इसकी खबर लोगों को नहीं लगने देते थे।
- वे बौद्ध धर्म में गहरी आस्था रखते थे।
मेरे विचार से वेशभूषा देखकर व्यवहार करना पूरी तरह ठीक नहीं है। अनेक संत-महात्मा और भिक्षु साधारण वस्त्र पहनते हैं किंतु वे उच्च चरित्र के इनसान होते हैं, पूज्य होते हैं। परंतु यह बात भी सत्य है कि वेशभूषा से मनुष्य की पहचान होती है। हम पर पहला प्रभाव वेशभूषा के कारण ही पड़ता है। उसी के आधार पर हम भले-बुरे की पहचान करते हैं।
यह पाठ अन्य विधाओं से इसलिए अलग है क्योंकि यह यात्रा वृत्तांत’ है जिसमें लेखक द्वारा तिब्बत की यात्रा का वर्णन किया गया है। यह उसकी यात्रा का अनुभव है न कि मानव चरित्र का चित्रण जैसा कि अन्य विधाओं में होता है।
भाषा अध्ययन
- पता नहीं चलता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।
- कभी लगता था कि घोड़ा आगे जा रहा है, कभी लगता था पीछे जा रहा है।
पाठेतर सक्रियता
आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता है और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसंबर 2004 को सुनामी या समुद्री भूकंप से उठने वाली तूफ़ानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण भी बन सकती है।
प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलट कर रख देगी, कहना मुश्किल है। हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और, मगर यह अबूझ पहेली अकसर हमारे विश्वास के चीथड़े कर देती है और हमें यह अहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आने वाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला। प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इंसान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है।
दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है, ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सकें और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का निर्माण होता है। सुनामी के कारण दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे हैं, उसे निराशा के चश्मे से न देखें। ऐसे समय में भी मेघना, अरुण और मैगी जैसे बच्चे हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं। 13 वर्षीय मेघना और अरुण
दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे। इंडोनेशिया की रिजा पड़ोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि एक विशालकाय साँप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया। मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना, उसकी शरारत को समझा, तुरंत अपना बेड़ा उठाया और अपने परिजनों को उस पर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर। महज 18 साल की जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सुनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुईं।
जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूंढ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवती हार नहीं मानती।
- कौन-सी आपदा को सुनामी कहा जाता है?
- ‘दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है’-आशय स्पष्ट कीजिए।
- मैगी, मेघना और अरुण ने सुनामी जैसी आपदा का सामना किस प्रकार किया?
- प्रस्तुत गद्यांश में ‘दृढ़ निश्चय’ और ‘महत्त्व’ के लिए किन शब्दों का प्रयोग हुआ है ?
- इस गद्यांश के लिए शीर्षक ‘नाराज़ समुद्र’ हो सकती है। आप कोई अन्य शीर्षक दीजिए।
उत्तर-
- भीषण भूकंप के कारण समुद्र में आने वाली तूफ़ानी लहरों को सुनामी कहा जाता है। यह आसपास के इलाकों को नष्ट कर देता है।
- दुख जीवन को साफ़-सुथरा बनाता है। अर्थात् व्यक्ति दुख से निपटने के उपाय सोचता है, उनसे छुटकारा पाता है। भविष्य में इससे बचने की तैयारी कर लेता है और नई आशा, उमंग और उल्लास के साथ जीवन शुरू करता है।
- मेघना और अरुण सुनामी में फँस गए थे, वे दो दिन तक समुद्र में तैरते रहे। कई बार वे समुद्री जीवों का शिकारहोने से बचे और अंत में किनारे लगकर बच गए। मैगी ने समुद्र में उठ रही दस मीटर ऊँची लहरों के बीच अपना बेड़ा उतार दिया। उसमें अपने परिजनों को बिठाकर किनारे आने के लिए संघर्ष करने लगी। उसके बेड़े में 41 लोग और भी थे।
- बुलंद इरादे, अहमियत
- “सुनामी का कहर’ या प्रकृति का क्रोध-सुनामी।
पाठ 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
लेखक के अनुसार, जीवन में ‘सुख’ का अभिप्राय केवल उपभोग-सुख नहीं है। अन्य प्रकार के मानसिक, शारीरिक और सूक्ष्म आराम भी ‘सुख’ कहलाते हैं। परंतु आजकल लोग केवल उपभोग-सुख को ‘सुख’ कहने लगे हैं।
प्रश्न 2.
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर-
उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारा दैनिक जीवन पूरी तरह प्रभावित हो रहा है। आज व्यक्ति उपभोग को ही सुख समझने लगा है। इस कारण लोग अधिकाधिक वस्तुओं का उपभोग कर लेना चाहते हैं। लोग बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदकर दिखावा करने लगे हैं। इस संस्कृति से मानवीय संबंध कमजोर हो रहे हैं। अमीर-गरीब के बीच दूरी बढ़ने से समाज में अशांति और आक्रोश बढ़ रहा है।
प्रश्न 3.
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ?
उत्तर-
गाँधी जी सामाजिक मर्यादाओं तथा नैतिकता के पक्षधर थे। वे सादा जीवन, उच्च विचार के कायल थे। वे चाहते थे कि समाज में आपसी प्रेम और संबंध बढ़े। लोग संयम और नैतिकता का आचरण करें। उपभोक्तावादी संस्कृति इस सबके विपरीत चलती है। वह भोग को बढ़ावा देती है और नैतिकता तथा मर्यादा को तिलांजलि देती है। गाँधी जी चाहते थे कि हम भारतीय अपनी बुनियाद पर कायम रहें, अर्थात् अपनी संस्कृति को न त्यागें। परंतु आज उपभोक्तावादी संस्कृति के नाम पर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मिटाते जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने उपभोक्तावादी संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है।
प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
उत्तर-
(क) उपभोक्तावादी संस्कृति अधिकाधिक उपभोग को बढ़ावा देती है। लोग उपभोग का ही सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। इससे वे वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जिसका असर उनके चरित्र पर पड़ता है।
(ख) लोग समाज में प्रतिष्ठा दिखाने के लिए तरह-तरह के तौर तरीके अपनाते हैं। उनमें कुछ अनुकरणीय होते हैं तो कुछ उपहास का कारण बन जाते हैं। पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार अंतिम विश्राम हेतु-अधिक-से-अधिक मूल्य देखकर सुंदर जगह सुनिश्चित करने लगे हैं। उनका ऐसा करना नितांत हास्यास्पद है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 5.
कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों ?
उत्तर-
टी.वी. पर आने वाले विज्ञापन बहुत प्रभावशाली होते हैं। वे हमारी आँखों और कानों को विभिन्न दृश्यों और ध्वनियों के सहारे प्रभावित करते हैं। वे हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक आकर्षण जगा देते हैं। बच्चे तो उनके बिना रह ही नहीं पाते। ‘खाए जाओ, खाए जाओ’, ‘क्या करें, कंट्रोल ही नहीं होता’, जैसे आकर्षण हमारी लार टपका देते हैं। इसलिए अनुपयोगी वस्तुएँ भी हमें लालायित कर देती हैं।
प्रश्न 6.
आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
हमारे अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार उसकी गुणवत्ता होनी चाहिए न कि विज्ञापन। इस संबंध में कबीर की उक्ति पूर्णतया सटीक बैठती है कि-‘मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान।’ विज्ञापन हमें वस्तुओं की विविधता, मूल्य, उपलब्धता आदि का ज्ञान तो कराते हैं परंतु उनकी गुणवत्ता का ज्ञान हमें अपनी बुधि-विवेक से करके ही आवश्यकतानुसार वस्तुएँ खरीदनी चाहिए।
प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
आज दिखावे की संस्कृति पनप रही है। यह बात बिल्कुल सत्य है। इसलिए लोग उन्हीं चीजों को अपना रहे हैं, जो दुनिया की नजरों में अच्छी हैं। सारे सौंदय-प्रसाधन मनुष्यों को सुंदर दिखाने के ही प्रयास करते हैं। पहले यह दिखावा औरतों में होता था, आजकल पुरुष भी इस दौड़ में आगे बढ़ चले हैं। नए-नए परिधान और फैशनेबल वस्त्र दिखावे की संस्कृति को ही बढ़ावा दे रहे हैं।
आज लोग समय देखने के लिए घड़ी नहीं खरीदते, बल्कि अपनी हैसियत दिखाने के लिए हजारों क्या लाखों रुपए की घड़ी पहनते हैं। आज हर चीज पाँच सितारा संस्कृति की हो गई है। खाने के लिए पाँच-सितारा होटल, इलाज के लिए पाँच सितारा हस्पताल, पढ़ाई के लिए पाँच सितारा सुविधाओं वाले विद्यालये-सब जगह दिखावे का ही साम्राज्य है। यहाँ तक कि लोग मरने के बाद अपनी कब्र के लिए लाखों रुपए खर्च करने लगे हैं ताकि वे दुनिया में अपनी हैसियत के लिए पहचाने जा सकें।
यह दिखावा-संस्कृति मनुष्य को मनुष्य से दूर कर रही है। लोगों के सामाजिक संबंध घटने लगे हैं। मन में अशांति जन्म ले रही है। आक्रोश बढ़ रहा है, तनाव बढ़ रहा है। हम लक्ष्य से भटक रहे हैं। यह अशुभ है। इसे रोका जाना चाहिए।
प्रश्न 8.
आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
आज की उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाव से हमारे रीति-रिवाज और त्योहार अछूते नहीं रहे। हमारे रीति-रिवाज और त्योहार सामाजिक समरसता बढ़ाने वाले, वर्ग भेद मिटाने वाले सभी को उल्लासित एवं आनंदित करने वाले हुआ करते थे, परंतु उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से इनमें बदलाव आ गया है। इससे त्योहार अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। आज रक्षाबंधन के पावन अवसर पर बहन भाई द्वारा दिए गए उपहार का मूल्य आंकलित करती है। दीपावली के त्योहार पर मिट्टी के दीए प्रकाश फैलाने के अलावा समानता दर्शाते थे परंतु बिजली की लड़ियों और मिट्टी के दीयों ने अमीर-गरीब का अंतर स्पष्ट कर दिया है। यही हाल अन्य त्योहारों का भी है।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 9.
धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
(ख) धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों को प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-
उत्तर-
(क)
- धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। (‘ धीरे-धीरे रीतिवाचक क्रिया-विशेषण) (सब-कुछ ‘परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण’)
- आपको लुभाने की जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है। (‘निरंतर’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
- सामंती संस्कृति के तत्त्वे भारत में पहले भी रहे हैं। (‘पहले’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)
- अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। (आज, कल कालवाचक क्रिया-विशेषण)
- हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)
(ख)
- धीरे-धीरे – भ्रष्टाचार की बीमारी धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल चुकी है।
- जोर-से – अचानक यहाँ जोर-से विस्फोट हुआ। लगातार-कल से लगातार वर्षा हो रही है।
- हमेशा – चोरी और बेईमानी हमेशा नहीं चलती।
- आजकल – आजकल विज्ञापनों का प्रचलन और भी जोर पकड़ता जा रहा है।
- कम – भारत में अनपढ़ों की संख्या कम होती जा रही है।
- ज्यादा – उत्तर प्रदेश में अपराधों की संख्या पंजाब से ज्यादा है।
- यहाँ – कल तुम यहाँ आकर बैठना।
- उधर – मैंने जानबूझकर उधर नहीं देखा।
- बाहर – तुम चुपचाप बाहर चले जाओ।
(ग)
- निरंतर, (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
- पके (विशेषण)
- हलकी (विशेषण) कल रात कल रात (कालवाचक क्रियाविशेषण) जोरों की (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
- उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण) मुँह में (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
- आजकल (कालवाचक क्रिया-विशेषण) बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न 10.
‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर-
इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृत के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें। क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है। आप प्रतिदिन टी० वी० पर ढेरों विज्ञापन देखते-सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी ज़बान पर चढ़ हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए। उत्तर-छात्र स्वयं करें।
पाठ 4 साँवले सपनों की याद
प्रश्न 1.
किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया?
उत्तर-
एक बार बचपन में सालिम अली की एयरगन से एक गौरैया घायल होकर गिर पड़ी। इस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया। वे गौरैया की देखभाल, सुरक्षा और खोजबीन में जुट गए। उसके बाद उनकी रुचि पूरे पक्षी-संसार की ओर मुड़ गई। वे पक्षी-प्रेमी बन गए।
प्रश्न 2.
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई थीं?
उत्तर-
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सामने रेगिस्तानी हवा के गरम झोकों और उसके दुष्प्रभावों का उल्लेख किया। यदि इस हवा से केरल की साइलेंट वैली को न बचाया गया तो उसके नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। प्रकृति के प्रति ऐसा प्रेम और चिंता देख उनकी आँखें नम हो गईं।
प्रश्न 3.
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि ‘‘मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है?”
उत्तर-
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा जानती थी कि लॉरेंस को गौरैया से बहुत प्रेम था। वे अपना काफी समय गौरैया के साथ बिताते थे। गौरैया भी उनके साथ अंतरंग साथी जैसा व्यवहार करती थी। उनके इसी पक्षी-प्रेम को उद्घाटित करने के लिए उन्होंने यह वाक्य कहा।
प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा!
(ग) सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।
उत्तर-
(क) लॉरेंस बनावट से दूर रहकर प्राकृतिक जीवन जीते थे। वे प्रकृति से प्रेम करते हुए उसकी रक्षा के लिए चिंतित रहते थे। इसी तरह सालिम अली ने भी प्रकृति की सुरक्षा, देखभाल के लिए प्रयास करते हुए सीधा एवं सरल जीवन जीते थे।
(ख) मृत्यु ऐसा सत्य है जिसके प्रभाव स्वरूप मनुष्य सांसारिकता से दूर होकर चिर निद्रा और विश्राम प्राप्त कर लेता है। उसका हँसना-गाना, चलना-फिरना सब बंद हो जाता है। मौत की गोद में विश्राम कर रहे सालिम अली की भी यही स्थिति थी। अब उन्हें किसी तरह से पहले जैसी अवस्था में नहीं लाया जा सकता था।
(ग) टापू समुद्र में उभरा हुआ छोटा भू-भाग होता है जबकि सागर अत्यंत विशाल और विस्तृत होता है। सालिम अली भी प्रकृति और पक्षियों के बारे में थोड़ी-सी जानकारी से संतुष्ट होने वाले नहीं थे। वे इनके बारे में असीमित ज्ञान प्राप्त करके अथाह सागर-सा बन जाना चाहते थे।
प्रश्न 5.
इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
‘साँवले सपनों की याद’ नामक पाठ की भाषा-शैली संबंधी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. मिश्रित शब्दावली का प्रयोग-
इस पाठ में उर्दू, तद्भव और संस्कृत शब्दों का सम्मिश्रण है। लेखक ने उर्दू शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। उदाहरणतया
जिंदगी, परिंदा, खूबसूरत, हुजूम, ख़ामोश, सैलानी, सफ़र, तमाम, आखिरी, माहौल, खुद। संस्कृत शब्दों का प्रयोग भी प्रचुरता से हुआ है। जैसेसंभव, अंतहीन, पक्षी, वर्ष, इतिहास, वाटिका, विश्राम, संगीतमय, प्रतिरूप।
जाबिर हुसैन की शब्दावली गंगा-जमुनी है। उन्होंने संस्कृत-उर्दू का इस तरह प्रयोग किया है कि वे सगी बहने लगती हैं। जैसे- अंतहीन सफर, प्रकृति की नज़र, दुनिया संगीतमय, जिंदगी को प्रतिरूप। इन प्रयोगों में एक शब्द संस्कृत का, तो दूसरा उर्दू का है।
2. जटिल वाक्यों का प्रयोग-
जाबिर हुसैन की वाक्य-रचना बंकिम और जटिल है। वे सरल-सीधे वाक्यों का प्रयोग नहीं करते। कलात्मकता उनके हर वाक्य में है। उदाहरणतया
‘सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ अग्रसर है।’
पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था।
3. अलंकारों का प्रयोग-
जाबिर हुसैन अलंकारों की भाषा में लिखते हैं। उपमा, रूपक, उनके प्रिय अलंकार हैं। उदाहरणतया
- अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं। (उपमा)
- सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाय अथाह सागर बनकर उभरे थे।
- रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है? (रूपक) ।
4. भावानुरूप भाषा-
ज़ाबिर हुसैन भाव के अनुरूप शब्दों और वाक्यों की प्रकृति बदल देते हैं। उदाहरणतया, कभी वे छोटे-छोटे वाक्य प्रयोग करते हैं
- आज सालिम अली नहीं हैं।
- चौधरी साहब भी नहीं हैं। कभी वे उत्तेजना लाने के लिए प्रश्न शैली का प्रयोग करते हैं और जटिल वाक्य बनाते चले जाते हैं। जैसे
- कौन बचा है, जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा?
- कौन बचा है, जो अब हिमालय और लद्दाख की बर्फीली जमीनों पर जीने वाले पक्षियों की वकालत करेगा?
प्रश्न 6.
इस पाठ में लेखक ने सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखक ने सालिम अली का जो चित्र खींचा है, वह इस प्रकार है-
सालिम अली प्रसिद्ध पक्षी-विज्ञानी होने के साथ-साथ प्रकृति-प्रेमी थे। एक बार बचपन में उनकी एअरगन से घायल होकर नीले कंठवाली गौरैया गिरी थी। उसकी हिफाजत और उससे संबंधित जानकारी पाने के लिए उन्होंने जो प्रयास किया, उससे पक्षियों के बारे में उठी जिज्ञासा ने उन्हें पक्षी-प्रेमी बना दिया। वे दूर-दराज घूम-घूमकर पक्षियों के बारे में जानकारी एकत्र रहे हैं और उनकी सुरक्षा के लिए चिंतित रहे। वे केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवा के झोकों से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से भी मिले। वे प्रकृति की दुनिया के अथाह सागर बन गए थे।
प्रश्न 7.
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
‘साँवले सपनों की याद’ एक रहस्यात्मक शीर्षक है। इसे पढ़कर पाठक जिज्ञासा से आतुर हो जाता है कि कैसे सपने? किसके सपने? कौन-से सपने? ये सपने साँवले क्यों हैं? कौन इन सपनों की याद में आतुर है? आदि।
‘साँवले सपने’ मनमोहक इच्छाओं के प्रतीक हैं। ये सपने प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली से संबंधित हैं। सालिम अली जीवन-भर सुनहरे पक्षियों की दुनिया में खोए रहे। वे उनकी सुरक्षा और खोज के सपनों में खोए रहे। ये सपने हर किसी को नहीं आते। हर कोई पक्षी-प्रेम में इतना नहीं डूब सकता। इसलिए आज जब सालिम अली नहीं रहे तो लेखक को उन साँवले सपनों की याद आती है जो सालिम अली की आँखों में बसते थे। यह शीर्षक सार्थक तो है किंतु गहरा रहस्यात्मक है। चंदन की तरह घिस-घिसकर इसके अर्थ तथा प्रभाव तक पहुँचा जा सकता है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8.
प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं?
उत्तर-
‘साँवले सपनों की याद’ सालिम अली ने पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता प्रकट की है। उन्होंने केरल की साइलेंट वादी को रेगिस्तानी हवा के झोंको से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री से मुलाकात की और उसे बचाने का अनुरोध किया। इस तरह अपने पर्यावरण को बचाने के लिए हम भी विभिन्न रूपों में अपना योगदान दे सकते हैं; जैसे-
- अपने आस-पास पड़ी खाली भूमि पर अधिकाधिक पेड़-पौधे लगाएँ।
- पेड़-पौधों को कटने से बचाने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करें।
- लोगों को पेड़-पौधों की महत्ता बताएँ।।
- हम जल स्रोतों को न दूषित करें और न लोगों को दूषित करने दें।
- फैक्ट्रियों से निकले अपशिष्ट पदार्थों एवं विषैले जल को जलस्रोतों में न मिलने दें।
- प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का प्रयोग कम से कम करें।
- इधर-उधर कूड़ा-करकट न फेंकें तथा ऐसा करने से दूसरों को भी मना करें।
- विभिन्न रूपों में बार-बार प्रयोग की जा सकने वाली वस्तुओं का प्रयोग करें।
- सूखी पत्तियों और कूड़े को जलाने से बचें तथा दूसरों को भी इस बारे में जागरूक करें।
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
साँवले सपनों का हुजूम कहाँ जा रहा है? उसे रोकना संभव क्यों नहीं है?
उत्तर-
साँवले सपनों का हुजूम मौत की खामोश वादी की ओर जा रहा है। इसे रोकना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि इस वादी ‘ में जाने वाले वे होते हैं जो मौत की गोद में चिर विश्राम कर रहे होते हैं। ये अपना जीवन जी चुके होते हैं।
प्रश्न 2.
‘मौत की खामोश वादी’ किसे कहा गया है? इसे घाटी की ओर किसे ले जाया जा रहा है?
उत्तर-
‘मौत की खामोश वादी’ कब्रिस्तान को कहा गया है। इस घाटी की ओर प्रसिद्ध पक्षी प्रेमी सालिम अली को ले जाया जा रहा है जो लगभग सौ वर्ष की उम्र में कैंसर नामक बीमारी का शिकार हो गए और मृत्यु की गोद में सो गए हैं।
प्रश्न 3.
सालिम अली के इस सफ़र को अंतहीन क्यों कहा गया है?
उत्तर-
सालिम अली के इस सफ़र को इसलिए अंतहीन कहा गया है क्योंकि इससे पहले वाले सफ़रों में सालिम अली जब पक्षियों की खोज में निकलते थे तो वे पक्षियों को देखते ही उनसे जुड़ी दुर्लभ जानकारियाँ लेकर लौट आते थे परंतु इस सफ़र का कोई अंत न होने से सालिम अली लौट न सकेंगे।
प्रश्न 4.
मृत्यु की गोद में सोए सालिम अली की तुलना किससे की गई है और क्यों?
उत्तर-
मृत्यु की गोद में सोए सालिम अली की तुलना उस वन-पक्षी से की गई है जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि सालिम अली भी अपनी जिंदगी के सौ वर्ष जीकर मृत्यु को प्राप्त कर चुके हैं। अब वे पक्षियों के बारे में जानकारी एकत्र करने नहीं जा सकेंगे।
प्रश्न 5.
सालिम अली की दृष्टि में मनुष्य क्या भूल करते हैं? उन्होंने इसे भूल क्यों कहा?
उत्तर-
सालिम अली की दृष्टि में मनुष्य यह भूल करते हैं कि लोग पक्षियों जंगलों-पहाड़ों, झरने-आवशारों आदि को आदमी की निगाह से देखते हैं। उन्होंने इसे भूल इसलिए कहा क्योंकि मनुष्य पक्षियों, नदी-झरनों आदि को इस दृष्टि से देखता है कि इससे उसका कितना स्वार्थ पूरा हो सकता है।
प्रश्न 6.
वृंदावन में यमुना का साँवला पानी किन-किन घटनाओं की याद दिलाता है?
उत्तर-
वृंदावन में यमुना का साँवला पानी कृष्ण से जुड़ी विभिन्न घटनाओं की याद दिलाता है, जैसे-
- कृष्ण द्वारा वृंदावन में रासलीला रचाना। चंचल गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाना।
- माखन भरे बर्तन फोड़ना और दूध-छाली खाना।
- वाटिका में घने पेड़ों की छाँव में बंशी बजाना और ब्रज की गलियों को संगीतमय कर देना जिसे सुनते ही लोगों के कदम ठहर जाना।
प्रश्न 7.
वृंदावन में सुबह-शाम सैलानियों को होने वाली अनुभूति अन्य स्थानों की अनुभूति से किस तरह भिन्न है?
उत्तर-
वृंदावन में सुबह-शाम सैलानियों को सुखद अनुभूति होती है। वहाँ सूर्योदय पूर्व जब उत्साहित भीड़ यमुना की सँकरी गलियों से गुजरती है तो लगता है कि अचानक कृष्ण बंशी बजाते हुए कहीं से आ जाएँगे। कुछ ऐसी ही अनुभूति शाम को भी होती है। ऐसी अनुभूति अन्य स्थानों पर नहीं होती है।
प्रश्न 8.
पक्षियों के प्रति सालिम अली की दृष्टि अन्य लोगों की दृष्टि में क्या अंतर है? ‘साँवले सपनों की याद’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर-
सालिम अली दूर-दूर तक पक्षियों की खोज में यात्रा करते थे। वे अत्यंत उत्साह से दुर्गम स्थानों पर भी पक्षियों की खोज करते, उनकी सुरक्षा के बारे में सोचते और उनसे जुड़ी दुर्लभ जानकारी हासिल करते थे परंतु अन्य लोग पक्षियों को अपने स्वार्थ और मनोरंजन की दृष्टि से देखते हैं।
प्रश्न 9.
‘बर्ड-वाचर’ किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर-
‘बर्ड-वाचर’ प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली को कहा गया है क्योंकि सालिम अली जीवनभर पक्षियों की खोज करते रहे। और उनकी सुरक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित रहे। वे अपने सुख-दुख की चिंता किए बिना आँखों पर दूरबीन लगाए पक्षियों से जुड़ी जानकारी एकत्र करते रहे।
प्रश्न 10.
सालिम अली पक्षी-प्रेमी होने के साथ-साथ प्रकृति प्रेमी भी थे। साँवले सपनों की याद पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सालिम अली पक्षियों से जितना लगाव रखते हुए उनकी सुरक्षा के लिए चिंतित रहते थे उतना ही वे प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी चिंतित रहते थे। वे केरल की साइलेंट वैली को बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मिले और वैली को बचाने का अनुरोध किया।
प्रश्न 11.
तहमीना कौन थीं? उन्होंने सालिम अली की किस तरह मदद की?
उत्तर-
तहमीना सालिम अली की सहपाठिनी थी जो बाद में उनकी जीवनसंगिनी बनी। उन्होंने सालिम अली के पक्षी-प्रेम के मार्ग में कोई बाधा नहीं खड़ी की। उन्होंने सालिम अली का साथ दिया और प्रकृति से जुड़ने में उनकी मदद की।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘अब हिमालय और लद्दाख की बरफ़ीली जमीनों पर रहने वाले पक्षियों की वकालत कौन करेगा’? ऐसा लेखक ने क्यों कहा होगा? ‘सावले सपनों की याद’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सालिम अली की मृत्यु पर लेखक के मस्तिष्क में उनसे जुड़ी हर यादें चलचित्र की भाँति घूम गईं। लेखक ने महसूस किया कि सालिम अली आजीवन पक्षियों की तलाश में पहाड़ जैसे दुर्गम स्थानों पर घूमते रहे। वे आँखों पर दूरबीन लगाए नदी के किनारों पर जंगलों में और पहाड़ जैसे दुर्गम स्थानों पर भी पक्षियों की खोज करते रहे और उनकी सुरक्षा के प्रति प्रयत्नशील रहे। वे पक्षियों को बचाने का उपाय करते रहे। इसके विपरीत आज मनुष्य पक्षियों की उपस्थिति में अपना स्वार्थ देखता है। सालिम अली के पक्षी-प्रेम को याद कर लेखक ने ऐसा कहा होगा।
प्रश्न 2.
फ्रीडा कौन थी? उसने लॉरेंस के बारे में क्या-क्या बताया?
उत्तर-
फ्रीडा डी.एच.लॉरेंस की पत्नी थीं। लॉरेंस के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया था कि मेरे लिए लॉरेंस के बारे में कुछ कह पाना असंभव-सा है। मुझे लगता है कि मेरे छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है। वह मुझसे भी ज्यादा जानती है। वह सचमुच ही इतना खुला-खुला और सादा दिल आदमी थे। संभव है कि लॉरेंस मेरी रगों में, मेरी हड्डियों में समाया हो।
प्रश्न 3.
‘साँवले-सपनों की याद’ पाठ के आधार पर बताइए कि सालिम अली को नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप क्यों कहा गया है?
उत्तर-
सालिम अली महान पक्षी-प्रेमी थे। इसके अलावा वे प्रकृति से असीम लगाव रखते थे। वे प्रकृति के इतना निकट आ गए थे कि ऐसा लगता था कि उनका जीवन प्रकृतिमय हो गया था। सालिम अली प्रकृति के प्रभाव में आने के कायल नहीं थे। वे प्रकृति को अपने प्रभाव में लाना चाहते थे। पक्षी-प्रेम के कारण वे पक्षियों की खोज करते हुए प्रकृति के और निकट आ गए। नदी-पहाड़, झरने विशाल मैदान और अन्य दुर्गम स्थानों से उनका गहरा नाता जुड़ गया था। जिंदगी में अद्भुत सफलता पाने के बाद भी वे प्रकृति से जुड़े रहे। इस तरह उनका जीवन नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गया था।
प्रश्न 4.
‘साँवले सपनों की याद’ पाठ के आधार पर सालिम अली के व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
सालिम अली दुबली-पतली काया वाले व्यक्ति थे, जिनकी आयु लगभग एक सौ वर्ष होने को थी। पक्षियों की खोज में की गई लंबी-लंबी यात्राओं की थकान से उनका शरीर कमजोर हो गया था। वे अपनी आँखों पर प्रायः दूरबीन चढ़ाए रखते थे। पक्षियों की खोज के लिए वे दूर-दूर तक तथा दुर्गम स्थानों की यात्राएँ करते थे। उनकी एअर गन से घायल होकर गिरी नीले कंठवाली गौरैया ने उनके जीवन की दिशा बदले दी। वे पक्षी प्रेमी होने के अलावा प्रकृति प्रेमी भी थे। वे प्रकृतिमय जीवन जीते थे और उसकी सुरक्षा के लिए प्रयासरत रहते थे। वे नदी पहाड़-झरनों आदि को प्रकृति की दृष्टि से देखते थे।
प्रश्न 5.
‘साँवले सपनों की याद’ पाठ के आधार पर बताइए कि सामान्य लोग पर्यावरण की रक्षा में अपना योगदान किस तरह दे सकते हैं?
उत्तर
‘साँवले सपनों की याद’ पाठ से ज्ञात होता है कि सालिम अली प्रकृति और उससे जुड़े विभिन्न अंगों-नदी, पहाड़, झरने, आबशारों आदि को प्रकृति की निगाह से देखते थे और उन्हें बचाने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। उन्होंने केरल साइलेंट वैली को बचाने का अनुरोध किया। इसी तरह सामान्य लोग भी अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए विभिन्न रूपों में अपना योगदान दे सकते हैं; जैसे-
- अधिकाधिक पेड़ लगाकर धरती की हरियाली बढ़ाकर।
- पेड़ों को कटने से बचाकर।
- प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का प्रयोग न करके।
- अपने आसपास साफ़-सफ़ाई करके।
- जल-स्रोतों को दूषित होने से बचाकर।
- वन्य जीवों तथा पक्षियों की रक्षा करके मनुष्य पर्यावरण की सुरक्षा कर सकता है।
पाठ 5 नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया
प्रश्न 1.
बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन-कौन से तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया?
उत्तर-
बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को महल की रक्षा के लिए निम्नलिखित तर्क दिए-
- अंग्रेजों के विरुद्ध शस्त्र उठाने वाले दोषी हो सकते हैं किंतु यह महल दोषी नहीं है।
- यह राजमहल उसे (मैना को) बहुत प्रिय है।
प्रश्न 2.
मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी पर अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे। क्यों?
उत्तर-
मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी क्योंकि मैना उसी मकान में पली-बढ़ी थी, इसी में उसका बचपन बीता था तथा इस मकान को वह बहुत चाहती थी पर अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाकर अंग्रेज़ों का नरसंहार करने वाले नाना का महल होने के कारण अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे।
प्रश्न 3.
सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया-भाव के क्या कारण थे?
उत्तर-
सर टामस स्वभाव से ही दयालु रहे होंगे। तभी तो वे उस किशोरी सुंदरी को देखते ही ठहर गए और उसके जीवन में रुचि लेने लगे।
दूसरा कारण यह रहा कि वे मैना को पहचान गए। मैना उनकी मृत बेटी मेरी की बचपन की सखी थी। तब ‘हे’ उनके घर भी आया करते थे। इन बातों ने ‘हे’ के दिल में मैना के प्रति ममता जगा दी।
तीसरे, मैना ने स्वयं अपनी करुणापूर्ण बातों से ‘हे’ के मन में करुणा जगा दी।
प्रश्न 4.
मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैठकर जी भरकर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनाल ने किस भय से उसकी इच्छा पूर्ण न होने दी?
उत्तर-
जनरल आउटरम ने भग्नावशिष्ट राज प्रासाद पर जी भर रो लेने संबंधी मैना की इच्छा इसलिए नहीं पूरी होने दी क्योंकि-
- वह अंग्रेज़ सरकार का जनरल था। वह अंग्रेज सरकार के प्रति कुछ ज्यादा ही वफादारी दिखा रहा था।
- मैना के प्रति सहानुभूति दिखाने पर उसे अंग्रेज़ सरकार दंडित कर सकती थी।
- मैना को छोड़ देने पर कुछ लोग पुनः विद्रोह कर सकते थे।
- जनरल पाषाणहृदयी और असंवेदनशील व्यक्ति था।
प्रश्न 5.
बालिका मैना के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों ?
उत्तर-
बालिका मैना के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ अपनाने योग्य हैं-
निडरता- बालिका मैना निडर बालिका थी। जब सेनापति ‘हे’ अपने सैनिकों के साथ उसके राजमहल को तोड़ने आया तो उसने निडर होकर उनका सामना किया। उसे अपने पकड़े जाने का डर था। फिर भी वह ‘हे’ के सामने आई। उसे राजमहल न तोड़ने की प्रार्थना की, तर्क दिए तथा उसके मन में करुणा जगाई।
प्रश्न 6.
‘टाइम्स’ पत्र ने 6 सितंबर को लिखा था-‘बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उसे दर्दान नाना साहब को नहीं पकड़ सकी। इस वाक्य में भारत सरकार’ से क्या आशय है?
उत्तर-
इस वाक्य में भारत सरकार से आशय है- पराधीन भारत में ब्रिटिश शासन के निर्देश पर चलने वाली वह सरकार जिसे अंग्रेज़ अधिकारी चलाते थे और भारतीयों पर अत्याचारपूर्ण व्यवहार करते थे।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 7.
स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की क्या भूमिका रही होगी?
उत्तर-
स्वाधीनता आंदोलन को बढ़ाने में इस प्रकार के लेखों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही होगी। लोग जब अंग्रेजों के अत्याचारों को पढ़ते होंगे तो उनके विरुद्ध हो जाते होंगे। जब वे मैना जैसी निडर बालिका के निर्मम वध की बात सुनते होंगे तो उनका हृदय करुणा से भर उठता होगा। तब उनका मन त्याग, बलिदान और संघर्ष के लिए तैयार हो जाता होगा। इस प्रकार स्वाधीनता आंदोलन अपनी राह पर बढ़ता जाता होगा।
प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि मैना के बलिदान की यह खबर आपको रेडियो पर प्रस्तुत करनी है। इन सूचनाओं के आधार पर आप एक रेडियो समाचार तैयार करें और कक्षा में भावपूर्ण शैली में पढ़ें।
उत्तर-
मैना के बलिदान संबंधी खबर पर आधारित एक रेडियो समाचार कल शाम 7:00 बजे कानपुर के किले में एक भयानक हत्याकांड हो गया जिससे मानवता कलंकित हो गई। यह कायरतापूर्ण कृत्य अंग्रेज़ सरकार द्वारा किया गया।
जैसा कि आप सब जानते होंगे कि कल आधी रात में नाना साहब की कन्या मैना को आउटरम ने उस समय गिरफ्तार कर लिया था जब वह अपने महल के अवशेष पर बैठी विलाप कर रही थी। आउटरम ने उसे गिरफ्तार करने से पहले हृदयहीनता का नमूना पेश किया और मैना को जी भर रोने की अनुमति भी नहीं दी। इससे उसकी इच्छा अधूरी रह गई। हमारे विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि आज रात में योजनाबद्ध ढंग से मैना को धधकती आग में झाँककर मार डाला गया। वहाँ उपस्थित लोगों ने जलती मैना को देवी मानकर प्रणाम किया।
प्रश्न 9.
इस पाठ में रिपोर्ताज के प्रारंभिक रूप की झलक मिलती है लेकिन आज अखबारों में अधिकांश खबरें रिपोर्ताज की शैली में लिखी जाती हैं। आप-
(क) कोई दो खबरों को किसी अखबार से काटकर अपनी कॉपी में चिपकाइए तथा कक्षा में पढ़कर सुनाइए।
(ख) अपने आसपास की किसी घटना का वर्णन रिपोर्ताज शैली में कीजिए।
उत्तर-
(क) समाचार पत्रों से ली गईं दो खबरें
1. पूर्व उपराज्यपाल के कार्यकाल में प्रस्ताव बनाया गया था, विभिन्न एजेंसियों की आपसी खींचतान की वजह से योजना अटकी
चांदनी चौक में ट्राम चलाने की योजना खटाई में पड़ी
नई दिल्ली – जितेंद्र भारद्वाज
चांदनी चौक में ट्राम चलाने की योजना सिविक एजेंसियों की खींचतान में फंस गई है। पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग के समय यह प्रोजेक्ट बना था। मेट्रो को इसकी नोडल एजेंसी बनाया गया था। परिवहन प्राधिकरण, पीडब्ल्यूडी और ट्रैफ़िक पुलिस इसमें सदस्य थे।
दिल्ली में वर्ष 1963 तक ट्राम चांदनी चौक की शान रही हैं। इसे फिर से चलाने के लिए वर्ष 2014 में तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि फतेहपुरी मस्जिद से नेताजी सुभाष मार्ग और कौड़िया पुल से परेड ग्राउंड लालकिले तक ट्राम चलाई जा सकती है।
ट्राम वाले रूट पर सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक यहाँ कोई दूसरा वाहन नहीं चलेगा। मेट्रो-ट्रैफिक पुलिस के सूत्रों का कहना है कि फिलहाल यह योजना आगे नहीं बढ़ पा रही है। जिस एजेंसी को जो काम सौंपा गया, वह तय समये पर नहीं हुआ। एजेंसियों ने कुछ कामों को अधिकार क्षेत्र में नहीं होने की बात कहकर दूसरे के पाले में धकेल दिया।
पुरानी ट्राम
- 1908 से 1963 तक ट्राम के रास्ते में जामा मस्जिद, चांदनी चौक और सदर बाजार का इलाका पड़ता था, घोड़े खींचते थे ट्राम।
- 1960 में सबसे छोटा टिकट आधा आना, सबसे बड़ा चार आना।
- 1889 में नासिक और 1895 में चेन्नई में ट्राम चली थी।
- 1873 में कोलकाता, 1864 मुंबई और 1915 में पटना में ट्राम चली।
- 1908 में दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग ने ट्राम शुरू की।
2. बदलाव का श्रेय शिक्षकों को : सीएम
सम्मान
नई दिल्ली – प्रमुख संवाददाता
दो साल में दिल्ली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में छोटे-छोटे बदलाव किए हैं। इन बदलावों से हुए सुधारों का श्रेय दिल्ली सरकार के शिक्षकों को जाता है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को शिक्षक दिवस पर आयोजित सम्मान समारोह में यह बात कही।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जो भी दिल्ली के शिक्षकों ने किया उसकी चर्चा दुनिया भर में हुई। सरकार ने अपने कार्यकाल में शिक्षकों को सम्मान देने की कोशिश की है। जैसा सम्मान शिक्षकों के लिए पुरानी परंपराओं में दिया जा रहा था। जो समाज अपने शिक्षक का सम्मान करता है। यह समाज भी आगे बढ़ता है। इस समारोह में 91 शिक्षकों को सम्मानित किया गया। जिसमें 25 हजार रुपये, शाल व प्रशस्तिपत्र देकर सम्मानित किया गया।
मनीष सिसोदिया ने इस मौके पर कहा कि आज का दिन शिक्षकों का दिन है। आपके योगदान के सम्मान के लिए सरकार यहाँ उपस्थित है। उन्होंने कहा कि आप सब लोग इंसान व राष्ट्र बनाने के लिए काम कर रहे हैं। आज तन मन धन से शिक्षक काम कर रहे हैं। दो साल पहले तक जब भी सम्मान मिले तो यह सादा कार्यक्रम में नहीं भव्यता के साथ होना चाहिए। हर साल इस आयोजन को बड़ा किया जाए। आज करीब सवा लाख शिक्षक हैं, वे जबरदस्त भूमिका निभा रहे हैं। सरकार शिक्षा बजट बढ़ाने का श्रेय ले सकती है लेकिन काम शिक्षकों ने किया है। शिक्षकों के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में विशेष बात यह थी कि यहाँ मंच का संचालन छात्रों को दिया गया था। विभिन्न स्कूलों के बच्चों को पहली बार मंच संचालन का मौका दिया गया।
केजरीवाल बोले
- दिल्ली के शिक्षकों की चर्चा आज सारी दुनिया में हो रही है।
- त्यागराज स्टेडियम में आयोजित किया गया भव्य कार्यक्रम।
(ख) अपने आसपास की एक घटना का रिपोर्ताज शैली में वर्णन-
रानीखेड़ा के लोग कचरे पर कुछ भी नहीं सुनेंगे
नई दिल्ली – प्रमुख संवाददाता
रानीखेड़ा गांव में कचरा डाले जाने के विरोध में ग्रामीण तीसरे दिन मंगलवार को भी डटे रहे। निगम के ट्रक कचरा डालने न आएँ, इसके लिए ग्रामीण रातभर पहरेदारी करते रहे। ग्रामीणों ने लिखित आश्वासन से पहले मौके से नहीं हटने की बात कही है।
गाजीपुर लैंडफिल साइट पर हुए हादसे के बाद से ही दिल्ली में हरदिन पैदा होने वाले कचरे का निष्पादन बड़ी समस्या के तौर पर सामने आया है। गाजीपुर में कचरा डालने पर रोक के बाद निगम की ओर से रानीखेड़ा गांव में राविवार को कचरा डालने का प्रयास किया गया था, लेकिन, ग्रामीणों ने कचरे के ट्रकों को वापस लौटा दिया। तब से ही ग्रामीण मौके पर जमे हुए हैं। दिन में महिलाएँ और बच्चे धरने पर बैठे रहे, जबकि रात के समय पुरुषों द्वारा पहरेदारी की जा रही है।
स्थानीय निवासी सतबीर डबास ने कहा कि जब तक रानीखेड़ा में कूड़ा नहीं डालने का लिखित आश्वासन उपराज्यपाल की ओर से नहीं दिया जाएगा, तब तक ग्रामीण मौके से नहीं हटेंगे। इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े।
हिंदुस्तान 6 सितंबर, 2017 से साभार
प्रश्न 10.
आप किसी ऐसे बालक/बालिका के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए जिसने कोई बाहदुरी का काम किया हो।
उत्तर-
दीपावली नजदीक थी। धनतेरस वाले दिन हमारे एक जानकार सपरिवार हमसे मिलने घर आए थे। दीपावली के आसपास
वैसे भी दुकानों पर और बाजारों में भीड़-भाड़ बढ़ जाती है। हमारे जानकार ने विचार किया कि यहाँ तक आए हैं तो दीपावली के लिए कुछ खरीददारी यहीं से करते चलें पर यह बात उन्होंने अपने तक ही सीमित रखा और पाँच-साढे पाँच बजे वे हमारे घर से निकले और बाजार चले गए। भीड़ होने के कारण वे अपनी पत्नी के साथ मोटरसाइकिल से धीरे-धीरे जा रहे थे। उनकी पत्नी का ध्यान आसपास की दुकानों पर रहा होगा तभी एक बीस-इक्कीस वर्षीय युवक ने उनके गले से चेन खींच ली। वह चेन लेकर भागने लगा तभी एक बारह-तेरह साल के लड़के ने उसे रोकना चाहा पर उसने लड़के को एक चाँटा मारा और कुछ ही दूर बाइक की ओर भागा। वहाँ उसका साथी बाइक स्टार्ट कर चुका था। वह बाजार की उल्टी दिशा में तेजी से बाइक दौड़ाकर गायब हो गया।
इधर हमारे जानकार ने जल्दी से अपनी बाइक खड़ी की। उन्होंने अपनी पत्नी को सांत्वना दी और देखा कि उनका गला चेन से एक दो जगह कट-सा गया था। उन्होंने तुरंत सौ नंबर पर फ़ोन किया। दस मिनट बाद पुलिस आई उनका बयान नोट किया तभी हमारे जानकार के पास वही बारह-तेरह वर्ष का बालक आया और कागज पर कुछ लिखा हुआ थमाकर चलता बना। हमारे जानकार ने देखा उस कागज पर उस बाइक का नंबर था जिस पर वह भागा था। पुलिस को बाइक का नंबर मिलते ही कार्यवाही में आसानी हुई। रात दस बजे तक चेन खींचने वाला और उसका साथी थाने में थे। अगले दिन पुलिस ने हमारे जानकार को थाने बुलाकर चैन लौटा दी। वे जानकार जब भी हमारे घर आते हैं, उस बालक के प्रति कृतज्ञता जताना नहीं भूलते।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 11.
भाषा और वर्तनी का स्वरूप बदलता रहता है। इस पाठ में हिंदी गद्य का प्रारंभिक रूप व्यक्त हुआ है जो लगभग 75-80 वर्ष पहले था। इस पाठ के किसी पसंदीदा अनुच्छेद को वर्तमान मानक हिंदी रूप में लिखिए।
उत्तर-
सेनापति ने दु:ख प्रकट करते हुए कहा-“कर्तव्य के कारण मुझे यह मकान गिराना ही होगा।” इस पर उस बालिका ने अपना परिचय देते हुए कहा-”मैं जानती हूँ कि आप जनरल ‘हे’ हैं। आपकी प्रिय कन्या मेरी और मुझमें बहुत प्रेम था। कई वर्ष पूर्व मेरी मेरे पास बराबर आती थी और मुझे हृदय से चाहती थी। उस समय आप भी हमारे यहाँ आते थे और मुझे अपनी पुत्री के ही समान प्यार करते थे। मालूम होता है कि आप वे सब बातें भूल गए हैं। मेरी की मृत्यु से मैं बहुत । दु:खी हुई थी। उसकी एक चिट्ठी मेरे पास अब तक है।”
वर्तमान मानक हिंदी रूप
उसी दिन संध्या समय लार्ड केनिंग का एक तार आया, जिसका आशय इस प्रकार था-लंदन के मंत्रिमंडल का यह मत है कि नाना का स्मृति-चिह्न तक मिटा दिया जाए। इसलिए वहाँ की आज्ञा के विरुद्ध कुछ नहीं हो सकता। उसी क्षण क्रूर जनरल आउटरम की आज्ञा से नाना साहब के सुविशाल राज मंदिर पर तोप के गोले बरसने लगे। घंटे भर में वह महल मिट्टी में मिला दिया गया।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न 12.
अपने साथियों के साथ मिलकर बहादुर बच्चों के बारे में जानकारी देने वाली पुस्तकों की सूची बनाइए।
उत्तर-
अपने विद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष की मदद से यह काम स्वयं करें।
प्रश्न 13.
इन पुस्तकों को पढ़िए. ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाएँ’-राजम कृष्णन, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली।
‘1857 की कहानियाँ’-ख्वाजा हसन निजामी, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली।
उत्तर-
विद्यार्थी इन पुस्तकों को खोजें और स्वयं पढ़ें।
प्रश्न 14.
अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
आजाद भारत में दुर्गा भाभी को उपेक्षा और आदर दोनों मिले। सरकारों ने उन्हें पैसों से तोलना चाहा। कई वर्ष पहले पंजाब में उनके सम्मान में आयोजित एक समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने उन्हें 51 हजार रुपये भेंट किए। भाभी ने वे रुपये वहीं वापस कर दिए। कहा-“जब हम आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, उस समय किसी व्यक्तिगत लाभ या उपलब्धि की अपेक्षा नहीं थी। केवल देश की स्वतंत्रता ही हमारा ध्येय था। उस ध्येय पथ पर हमारे कितने ही साथी अपना सर्वस्व निछावर कर गए, शहीद हो गए। मैं चाहती हूँ कि मुझे जो 51 हजार रुपये दिए गए हैं, उस धन से यहाँ शहीदों का एक बड़ा स्मारक बना दिया जाए, जिसमें क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का अध्ययन और अध्यापन हो, क्योंकि देश की नई पीढ़ी को इसकी बहुत आवश्यकता है।”
मुझे याद आता है सन् 1937 का ज़माना, जब कुछ क्रांतिकारी साथियों ने गाज़ियाबाद तार भेजकर भाभी से चुनाव लड़ने की प्रार्थना की थी। भाभी ने तार से उत्तर दिया-‘चुनाव में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। अतः लड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता।” मुल्क के स्वाधीन होने के बाद की राजनीति भाभी को कभी रास नहीं आई। अनेक शीर्ष नेताओं से निकट संपर्क होने के बाद भी वे संसदीय राजनीति से दूर ही बनी रहीं। शायद इसलिए अपने जीवन का शेष हिस्सा नई पीढ़ी के निर्माण के लिए अपने विद्यालय को उन्होंने समर्पित कर दिया।
- स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी का सम्मान किस प्रकार किया गया?
- दुर्गा भाभी ने भेंट स्वरूप प्रदान किए गए रुपये लेने से इंकार क्यों कर दिया?
- दुर्गा भाभी संसदीय राजनीति से दूर क्यों रहीं?
- आज़ादी के बाद उन्होंने अपने को किस प्रकार व्यस्त रखा?
- दुर्गा भाभी के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता आप अपनाना चाहेंगे?
उत्तर-
- कई वर्ष पहले उनके सम्मान में एक समारोह का आयोजन किया गया।
- स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी को दो तरह से सम्मानित किया गया
- पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने उन्हें 51000 रुपये भेट किए।
- दुर्गा भाभी ने भेंट स्वरूप प्रदान किए गए रुपये लेने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि उन्होंने आज़ादी के लिए जो संघर्ष किया था, उसका मूल्य नहीं लेना चाहती थी।
- दुर्गा भाभी संसदीय राजनीति से इसलिए दूर रहीं क्योंकि राजनीति में उनकी रुचि नहीं थी।
- आजादी के बाद दुर्गा भाभी ने नई पीढ़ी के निर्माण के लिए एक स्कूल खोला और वे उसी में पूरी तरह व्यस्त हो गईं।
- मैं दुर्गा भाभी के चरित्र से निम्नलिखित विशेषताएँ अपनाना चाहूँगा, जैसे-
- नि:स्वार्थ देश प्रेम
- नई पीढ़ी के चरित्र निर्माण में रुचि
- देशहित में त्याग
- दृढ़ निश्चय
- कर्म में विश्वास
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नाना साहब कौन थे?
उत्तर-
नाना साहब सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। वे बिठूर के शासक थे। वहाँ उनका राजमहल था। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करते हुए कानपुर अनेक अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतार दिया था। अपनी मातृभूमि को आजाद करवाने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया।
प्रश्न 2.
अंग्रेज़ों को मैना पर अपना क्रोध उतारने का अवसर मिल गया?
उत्तर-
कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाने और अनेक अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतारने के बाद नाना साहब अंग्रेजी सेना का मुकाबला न कर सके और कानपुर से भागने लगे। वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके। इससे अंग्रेजों को मैना पर क्रोध उतारने का मौका मिल गया।
प्रश्न 3.
अंग्रेज़ बिठूर की ओर क्यों गए?
उत्तर-
अंग्रेज़ बिठूर की ओर इसलिए गए क्योंकि वे कानपुर में नाना साहब को पकड़ न सके। नाना साहब अपने बिठूर स्थित राजमहल में हो सकते हैं, इसलिए वे बिठूर की ओर चले गए। वे नाना साहब को पकड़ना चाहते थे।
प्रश्न 4.
बिठूर पहुँचकर अंग्रेज सैनिक दल ने क्या किया?
उत्तर-
बिठूर पहुँचकर अंग्रेज़ सैनिक दल ने-
- नाना साहब का राजमहल लूट लिया।
- नाना साहब का महल ध्वस्त करने के लिए तोपें लगा दिया।
प्रश्न 5.
मैना कौन थी? उसे देखकर अंग्रेज सेनापति को आश्चर्य क्यों हुआ?
उत्तर-
मैना नानासाहब की पुत्री थी। उसे देखकर अंग्रेज सेनापति को इसलिए आश्चर्य हुआ क्योंकि जब सैनिक दल महल में लूट-पाट कर रहा था तब वह बालिका कहीं दिखाई न दी। अब उसके अचानक प्रकट होने से उन्हें आश्चर्य हो रहा था।
प्रश्न 6.
मैना ने सेनापति से क्या निवेदन किया और क्यों?
उत्तर-
मैना ने सेनापति से महल नष्ट न करने और उसकी रक्षा करने का निवेदन किया क्योंकि यह महल उसे अत्यंत प्रिय था। इसके अलावा वह इसी महल में पली-बढ़ी थी।
प्रश्न 7.
सेनापति ‘हे’ मैना का निवेदन क्यों स्वीकार नहीं कर पा रहे थे?
उत्तर-
मैना को अपनी पुत्री’ मैरी’ की सहचरी जानकर सेनापति ‘हे’ के मन में सहानुभूति उत्पन्न हुई। इसके बाद भी वे मैना को निवेदन इसलिए स्वीकार नहीं कर पा रहे थे क्योंकि वे अंग्रेज सरकार के कर्मचारी थे। उनका आदेश मानना उनका पहला कर्तव्य था।
प्रश्न 8.
आउटरम कौन था? वह सेनापति ‘हे’ पर क्यों बिगड़ उठा?
उत्तर-
आउटरम अंग्रेज़ी सेना का प्रधान सेनापति था। वह सेनापति हे’ पर इसलिए बिगड़ उठा क्योंकि सेनापति ‘हे’ ने नाना साहब के महल पर तोप से गोले बरसाकर अब तक नष्ट नहीं किया था। ‘हे’ द्वारा कर्तव्य की अवहेलना करते देख वह नाराज हो गया।
प्रश्न 9.
सेनापति ‘हे’ दुखी होकर नाना साहब के राजमहल से क्यों चले गए?
उत्तर-
सेनापति ‘हे’ मैना के निवेदन पर उस महल को बचाने के लिए सहमत हो गए थे। उन्होंने इसके लिए जब प्रधान सेनापति आउटरम से विनयपूर्वक कहा तो आउटरम किसी भी तरह न माना। अपनी इस तरह उपेक्षा देखकर ‘हे’ दुखी होकर वहाँ से चले गए।
प्रश्न 10.
सेनापति ‘हे’ के जाते ही अंग्रेज़ सैनिकों ने क्या-क्या किया?
उत्तर-
सेनापति ‘हे’ के जाते ही अंग्रेज सैनिकों ने-
- नाना साहब के महल को घेर लिया।
- वे फाटक तोड़कर हर जगह मैना को ढूँढ़ने लगे ताकि मैना को पकड़ सके।
प्रश्न 11.
आउटरम सेनापति ‘हे’ का अनुरोध स्वीकार नहीं कर पा रहा था, क्यों?
उत्तर-
अंग्रेजी सेना का प्रधान सेनापति आउटरम सेनापति ‘हे’ का अनुरोध इसलिए स्वीकार नहीं कर पा रहा था क्योंकि गवर्नर जनरल की आज्ञा के बिना वह कुछ नहीं कर सकता था। वह सेनापति ‘हे’ की विनती स्वीकार कर अंग्रेजी सरकार का कोप भोजन नहीं बनना चाहता था।
प्रश्न 12.
‘मैना अपने महल से बहुत लगाव रखती थी’ सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मैना अपने महल से बहुत लगाव रखती थी। इसका प्रमाण यह है कि-
- उसने निर्भीकतापूर्वक सेनापति ‘हे’ से महल की रक्षा करने की प्रार्थना की।
- अंग्रेजों द्वारा नष्ट किए गए प्रासाद के अवशेष पर कुछ देर रोना चाहती थी।
प्रश्न 13.
नाना साहब के प्रासाद के विषय में भेजे गए केनिंग के तार का आशय क्या था?
उत्तर-
नाना साहब के राज प्रासाद के बारे में केनिंग ने जो तार भेजा था, उसका आशय था-लंदन के मंत्रिमंडल का यह मत था कि अंग्रेज नर-नारियों की हत्या करने वाले नाना साहब के स्मृति-चिह्न तक को मिटा दिया जाए।
प्रश्न 14.
अंग्रेज़ सैनिक नाना साहब के प्रासाद के भग्नावशेष पर क्यों गए?
उत्तर-
अंग्रेज सैनिक नाना साहब के प्रासाद के भग्नावशेष पर इसलिए गए क्योंकि उस भग्नावशेष पर रात्रि में रोने की आवाज़ आ रही थी। जिस भग्नावशेष की वे रक्षा कर रहे हैं, उस पर कौन रो रहा है, यही पता करने वे वहाँ पहुँचे।
प्रश्न 15.
‘मैरी’ कौन थी? मैना से उसकी मित्रता कैसे हुई ?
उत्तर-
‘मैरी’ अंग्रेज सरकार के सेनापति ‘हे’ की पुत्री थी। मैरी और मैना दोना हम उम्र थीं। पहले सेनापति ‘हे’ मैना के घर मैरी को लेकर आया करते थे। मैरी और मैना के इस तरह मिलने से दोनों में मित्रता हो गई।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
अंग्रेजों ने नाना साहब के लिए किस विशेषण का प्रयोग किया है और क्यों?
उत्तर-
अंग्रेजों ने नाना साहब के लिए ‘दुर्दीत’ विशेषण का प्रयोग किया है। इसका कारण यह है कि-
- नाना साहब ने अंग्रेजों की अधीनता न स्वीकार कर उनसे डरकर मुकाबला किया।
- उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाकर बगावत कर दी थी।
- उन्होंने कानपुर में अनेक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था।
- अंग्रेजों द्वारा एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी नाना साहब उन्हें चकमा देकर भाग गए। अब वे अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आ रहे थे।
प्रश्न 2.
उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण सेनापति ‘हे’ महल को बचाने के लिए तैयार हो गया।
उत्तर-
सेनापति ‘हे’ को नाना साहब का बिठूर स्थित राज प्रासाद गिराने का कार्य सौंपा गया। उन्होंने महल के आगे तोप लगवा दिया। इसके बाद भी वे महल बचाने के लिए तैयार हो गए, क्योंकि-
- महल बचाने का अनुरोध करने वाली बालिका मैना उनकी मृत पुत्री की हम उम्र थी।
- मैना महल बचाने का तर्क देती हुई विनम्रतापूर्वक बातें कर रही थी।
- मैना के बारे में पता चला कि वह उनकी मृत पुत्री की सहेली है।
- वे मैना की इच्छाओं एवं भावनाओं का आदर कर रहे थे।
प्रश्न 3.
मैना ने सेनापति ‘हे’ को अपना परिचय किस तरह दिया और क्यों?
उत्तर-
मैना ने सेनापति ‘हे’ को अपना परिचय देते हुए कहा, “मैं जानती हूँ कि आप जनरल ‘हे’ हैं। आपकी प्यारी पुत्री मैरी में और मुझमें बहुत प्रेम संबंध था। कई वर्ष पूर्व मैरी मेरे पास बराबर आती थी और मुझे हृदय से चाहती थी। उस समय आप भी हमारे घर आते थे और मुझे अपनी पुत्री के समान प्यार करते थे। मैरी की मृत्यु से मुझे बड़ा दुख हुआ। उसकी एक चिट्ठी अब तक मेरे पास है।” मैना ने ऐसा इसलिए किया ताकि ‘हे’ महल गिराने के विषय में सहानुभूतिपूर्वक विचार करें।
प्रश्न 4.
6 सितंबर को ‘टाइम्स’ पत्र में छपे लेख की मुख्य बातें क्या थीं?
उत्तर-
6 सितंबर को ‘टाइम्स’ पत्र में छपे लेख की मुख्य बातें थीं-
- भारत सरकार (तत्कालीन भारत में अंग्रेज़ी सरकार) द्वारा नाना साहब को न पकड़ पाने पर दुख प्रकट करना।
- शरीर में रक्त रहते कानपुर हत्याकांड का बदला लेना न भूलना।
- टामस ‘हे’ के चरित्र पर सवालिया निशान लगाना।
- टामस पर कर्तव्य की अवहेलना का दोष मढ़ना।
- नाना के पुत्र, कन्या या निकट संबंधी को जिंदा न छोड़ने का आदेश।
- टामस ‘हे’ के सामने ही मैना को फाँसी पर लटका दिए जाने का आदेश।
पाठ 6 प्रेम चाँद के फटे जूते
प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्रं हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के चित्रं सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर-
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक व्यंग्य को पढ़कर प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं-
संघर्षशील लेखक-
प्रेमचंद आजीवन संघर्ष करते रहे। उन्होंने मार्ग में आने वाली चट्टानों को ठोकरें मारीं। अगल-बगल के रास्ते नहीं खोजे। समझौते नहीं किए। लेखक के शब्दों में
“तुम किसी सख्त चीज़ को ठोकर मारते रहे हो। ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया।”
अपराजेय व्यक्तित्व-
प्रेमचंद का व्यक्तित्व अपराजेय था। उन्होंने कष्ट सहकर भी कभी हार नहीं मानी। यदि वे मनचाहा परिवर्तन नहीं कर पाए, तो कम-से-कम कमजोरियों पर हँसे तो सही। उन्होंने निराश-हताश जीने की बजाय मुसकान बनाए रखी। उनकी नज़रों में तीखा व्यंग्य और आत्मविश्वास था। लेखक के शब्दों में–“यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हँस भी रहा है।”
कष्टग्रस्त जीवन-
प्रेमचंद जीवन-भर आर्थिक संकट झेलते रहे। उन्होंने गरीबी को सहर्ष स्वीकार किया। वे बहुत सीधे-सादे वस्त्र पहनते थे। उनके पास पहनने को ठीक-से जूते भी नहीं थे। फिर भी वे हीनता से पीड़ित नहीं थे। उन्होंने फोटो खिंचवाने में भी अपनी सहजता बनाए रखी।
सहजता-
प्रेमचंद अंदर-बाहर से एक थे। लेखक के शब्दों में-”इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी-इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है।”
मर्यादित जीवन-
प्रेमचंद ने जीवन-भर मानवीय मर्यादाओं को निभाया। उन्होंने अपने नेम-धरम को, अर्थात् लेखकीय गरिमा को बनाए रखा। वे व्यक्ति के रूप में तथा लेखक के रूप में श्रेष्ठ आचरण करते रहे।
प्रश्न 2.
सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए-
- बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
- लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिंचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाए।
- तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
- जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो?
उत्तर-
- ✗
- ✓
- ✗
- ✗
प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुरबान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?
उत्तर-
(क) जीवन में यह विडंबना है कि जिसका स्थान पाँव में हैं, अर्थात् नीचे है, उसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है। जिसका स्थान ऊँचा है, जो सिर पर बिठाने योग्य है, उसे कम सम्मान मिलता रहा है। आजकल तो जूतों का अर्थात् धनवानों का मान-सम्मान और भी अधिक बढ़ गया है। एक धनवान पर पच्चीसों गुणी लोग न्योछावर होते हैं। गुणी लोग भी धनवानों की जी-हुजूरी करते नजर आते हैं।
(ख) प्रेमचंद ने कभी पर्दे को अर्थात् लुकाव-छिपाव को महत्त्व नहीं दिया। उन्होंने वास्तविकता को कभी टॅकने का प्रयत्न नहीं किया। वे इसी में संतुष्ट थे कि उनके पास छिपाने-योग्य कुछ नहीं था। वे अंदर-बाहर से एक थे। यहाँ तक कि उनका पहनावा भी अलग-अलग न था।
लेखक अपनी तथा अपने युग की मनोभावना पर व्यंग्य करता है कि हम पर्दा रखने को बड़ा गुण मानते हैं। जो व्यक्ति अपने कष्टों को छिपाकर समाज के सामने सुखी होने का ढोंग करता है, हम उसी को महान मानते हैं। जो अपने दोषों को छिपाकर स्वयं को महान सिद्ध करता है, हम उसी को श्रेष्ठ मानते हैं।
(ग) लेखक कहता है-प्रेमचंद ने समाज में जिसे भी घृणा-योग्य समझा, उसकी ओर हाथ की अँगुली से नहीं, बल्कि अपने पाँव की अँगुली से इशारा किया। अर्थात् उसे अपनी ठोकरों पर रखा, अपने जूते की नोक पर रखा, उसके विरुद्ध संघर्ष किए रखा।
प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर
मेरे विचार से प्रेमचंद के बारे में लेखक का विचार यह रहा होगा कि समाज की परंपरा-सी है कि वह अच्छे अवसरों पर पहनने के लिए अपने वे कपड़े अलग रखता है, जिन्हें वह अच्छा समझता है। प्रेमचंद के कपड़े ऐसे न थे जो फ़ोटो खिंचाने लायक होते। ऐसे में घर पहनने वाले कपड़े और भी खराब होते। लेखक को तुरंत ही ध्यान आता है कि प्रेमचंद सादगी पसंद और आडंबर तथा दिखावे से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं। उनका रहन-सहन दूसरों से अलग है, इसलिए उसने टिप्पणी बदल दी।
प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर-
मुझे इस व्यंग्य की सबसे आकर्षक बात लगती है-विस्तारण शैली। लेखक एक संदर्भ से दूसरे संदर्भ की ओर बढ़ता चला जाता है। वह बूंद में समुद्र खोजने का प्रयत्न करता है। जैसे बीज में से क्रमश: अंकुर का, फिर पल्लव का, फिर पौधे और तने का; तथा अंत में फूल-फल का विकास होता चला जाता है, उसी प्रकार इस निबंध में प्रेमचंद के फटे जूते से बात शुरू होती है। वह बात खुलते-खुलते प्रेमचंद के पूरे व्यक्तित्व को उद्घाटित कर देती है। बात से बात निकालने की यह व्यंग्य शैली बहुत आकर्षक बन पड़ी है।
प्रश्न 6.
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर-
टीला शब्द ‘राह’ आनेवाली बाधा का प्रतीक है। जिस तरह चलते-चलते रास्ते में टीला आ जाने पर व्यक्ति को उसे पार करने के लिए विशेष परिश्रम करते हुए सावधानी से आगे बढ़ना पड़ता है उसी प्रकार सामाजिक विषमता, छुआछूत, गरीबी, निरक्षरता अंधविश्वास आदि भी मनुष्य की उन्नति में बाधक बनती है। इन्हीं बुराइयों के संदर्भ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग हुआ है। रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 7.
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर-
मेरे हाथ में मेरे जिस मित्र का हाथ है, उसकी एक चीज़ का मैं हमेशा से कायल हूँ। वह है उसकी टाई की गाँठ। ऐसी साफ-सुथरी गाँठ आपके देखने में नहीं आई होगी। लगता है, जैसे जन्मजात ऐसी ही हो। कोई सिलवट नहीं, कोई बिखरावट नहीं। ऐसा नहीं है कि वे यह टाई सूट के साथ पहनते हों। गर्मियों में कमीज के साथ भी वे टाई पहनते हैं। तब भी टाई की गाँठ इसी तरह रहती है।
सच बताऊँ! मुझे एक भी ऐसा दृश्य याद नहीं आता, जब मैंने उन्हें टाई के बिना देखा हो। हाँ, एक बार मैं सुबह-सुबह उनके घर चला गया था। उस समय भी उन्होंने मुझे 45 मिनट प्रतीक्षा कराई। जब ड्राइंग रूम में आए तो टाई लगाए हुए थे। गाँठ तब भी वैसी थी, जैसे जन्मजात हो।
मैं सोचता हूँ इन्हें गाँठ लगाने का इतना शौक क्यों है? शायद इसलिए कि वे बिखराव को नहीं, गठन को पसंद करते हैं। इसलिए जब भी बोलते हैं, सँभलकर बोलते हैं। मैंने आज तक उन्हें व्यर्थ की गप्पें लड़ाते नहीं देखी। चुटकले सुनाते नहीं देखा। सुनाते क्या, चुटकलों पर हँसते भी नहीं देखा। यदि कोई उनके सामने कोई चुटकले पर हँस दे तो वे उसे ‘बेहूदा’ या ‘बेशऊर’ कहकर घंटों तक अपना मुँह बिगाड़े रहते हैं।
उनका एक ही सिद्धांत है-बोलो, तो ढंग का बोलो। वरना चुप रहो। ऐसा न समझिए, कि वे अकसर चुप रहते हैं। नहीं, वे अकसर बोलते पाए जाते हैं। और जब भी बोलते हैं-किसी-न-किसी राष्ट्रीय समस्या पर चिंता प्रकट करते पाए जाते हैं। उनका व्यक्तित्व गंभीर है। यदि कोई उनकी बात न सुन रहा हो तो वे उस पर व्यंग्य कसने लगते हैं। और अगर कोई और बीच में बोलना शुरू कर दे तो उसकी ओर से मुँह मोड़कर उबासी लेने लगते हैं।
मेरे टाई वाले मित्र की एक खूबी यह भी है कि वे हर किसी के गिरेबान में झाँकते हैं। उनकी एक-से-एक बेहूदी बात को बतंगड़ बनाकर पेश करते हैं। पर अपने गिरेबान में उन्होंने टाई बाँध रखी है, किसी को झाँकने नहीं देते। पिछले दिनों उन्हें कोई सदमा लगा। वे पागल हो गए। पेट ऐसे निकल आया जैसे दस बच्चे एक साथ प्रसव करेंगे। लोगों को उनके गिरेबान में न सही, बाहरी व्यक्तित्व में झाँकने का मौका मिल गया। परंतु तब वे छुट्टियाँ ले गए। तब तक वापस नहीं आए, जब तक उनकी देह वापस अपनी औकात पर न लौट आई।
सच बात तो यह है कि मेरे इस मित्र के पूरे जीवन में गाँठे ही गाँठे हैं। अपने बड़े होने की गाँठ। टाई तो बस ऊपरी गाँठ है। भीतर कितनी गाँठे हैं, यह उनकी पत्नी से हमने जाना। वे भी उनसे इतना डरती हैं जितना कि चपड़ासी साहब से। इसलिए बेचारी तभी हँसती हैं, जब वे चाहते हैं।
प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर-
वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में बहुत बदलाव आया है। लोग वेशभूषा को सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक मानने लगे हैं। लोग उस व्यक्ति को ज्यादा मान-सम्मान और आदर देने लगे हैं जिसकी वेशभूषा अच्छी होती है। वेशभूषा से ही व्यक्ति का दूसरों पर पहला पड़ता है। हमारे विचारों का प्रभाव तो बाद में पड़ता है। आज किसी अच्छी-सी पार्टी में कोई धोतीकुरता पहनकर जाए तो उसे पिछड़ा समझा जाता है। इसी प्रकार कार्यालयों के कर्मचारी गण हमारी वेशभूषा के अनुरूप व्यवहार करते हैं। यही कारण है कि लोगों विशेषकर युवाओं में आधुनिक बनने की होड़ लगी है।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 9.
पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
- हौसला पस्त करना – उत्साह नष्ट करना।
वाक्य – अनिल कुंबले की फिरकी गेंदों ने श्रीलंका के खिलाड़ियों के हौसले पस्त कर दिए। - ठोकर मारना – चोट करना।
वाक्य – प्रेमचंद ने राह के संकटों पर खूब ठोकरें मारी। - टीला खड़ा होना – बाधाएँ आना।।
वाक्य – जीवन जीना सरल नहीं है। यहाँ पग-पग पर टीले खड़े हैं। - पहाड़ फोड़ना – बाधाएँ नष्ट करना।
वाक्य – प्रेमचंद उन संघर्षशील लेखकों में से थे जिन्होंने पहाड़ फोड़ना सीखा था, बचना नहीं। - जंजीर होना – बंधन होना।
वाक्य – स्वतंत्रता से जीने वाले पथ की सब जंजीरें तोड़कर आगे बढ़ते हैं।
प्रश्न 10.
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर-
प्रेमचंद का व्यक्तित्व उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का प्रयोग किया है, वे हैं-
- जनता के लेखक
- महान कथाकार
- साहित्यिक पुरखे
- युग प्रवर्तक
- उपन्यास-सम्राट
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न 11.
महात्मा गांधी भी अपनी वेशभूषा के प्रति एक अलग सोच रखते थे, इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे, पता लगाइए।
उत्तर-
छात्र महात्मा गांधी की जीवनी पढ़कर स्वयं पता लगाएँ।
प्रश्न 12.
महादेवी वर्मा ने ‘राजेंद्र बाबू’ नामक संस्मरण में पूर्व राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद का कुछ इसी प्रकार चित्रण किया गया है, उसे पढ़िए।
उत्तर-
छात्र ‘राजेंद्र बाबू’ संस्मरण पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
प्रश्न 13.
अमृतराय लिखित प्रेमचंद की जीवनी ‘प्रेमचंद-कलम का सिपाही’ पुस्तक पढिए।
उत्तर-
छात्र प्रेमचंद की जीवनी स्वयं पढ़ें।
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक की दृष्टि प्रेमचंद के जूते पर क्यों अटक गई?
उत्तर-
लेखक ने देखा कि प्रेमचंद ने जिस जूते को पहनकर फ़ोटो खिंचाया है, उसमें बड़ा-सा छेद हो गया है। इसमें से प्रेमचंद की अँगुली बाहर निकल आई है। प्रेमचंद ने इस फटे जूते को ढंकने का प्रयास भी नहीं किया।
प्रश्न 2.
फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी? के आधार पर प्रेमचंद की वेश-भूषा के बारे में लिखिए।
उत्तर-
प्रेमचंद ने मोटे कपड़े का कुरता-धोती पहन रखा था। उनके सिर पर वैसी ही टोपी थी। उनके फटे जूते से अँगुली दिख रही थी। ऐसी ही अत्यंत साधारण वेश-भूषा में उन्होंने फ़ोटो खिंचा रखा था।
प्रश्न 3.
प्रेमचंद ने अपने फटे जूते को ढंकने का प्रयास क्यों नहीं किया होगा?
उत्तर-
प्रेमचंद दिखावा एवं आडंबर से दूर रहने वाले व्यक्ति थे। उन्हें सादगीपूर्ण जीवन पसंद था। वे जैसा वास्तव में थे, वैसा ही दिखना चाहते थे, इसलिए प्रेमचंद ने अपने फटे जूते को छिपाने का प्रयास नहीं किया गया।
प्रश्न 4.
प्रेमचंद के चेहरे पर कैसी मुसकान थी और क्यों?
उत्तर-
प्रेमचंद के चेहरे पर अधूरी मुसकान थी। इसका कारण यह था कि प्रेमचंद महान साहित्यकार होकर भी अभावग्रस्त जिंदगी जी रहे थे। अभावों से उनकी मुसकान खो सी गई थी। फ़ोटोग्राफ़र के कहने पर भी वे ठीक से जल्दी से मुसकरा न पाए और मुसकान अधूरी रह गई।
प्रश्न 5.
‘मगर यह कितनी बड़ी ट्रेजडी है’, लेखिका ने ऐसा किस संदर्भ में कहा है?
उत्तर-
लेखक ने देखा कि ‘युग प्रवर्तक’, ‘उपन्यास सम्राट’ जैसे भारी भरकम विशेषणों से विभूषित साहित्यकार के पास फ़ोटो खिंचाने के लिए भी अच्छे जूते नहीं होने को बड़ी ‘ट्रेजडी’ कहा है। उसने महान साहित्यकार की अभावग्रस्तता के संदर्भ में ऐसा कहा है।
प्रश्न 6.
‘जूता हमेशा कीमती रहा है’-ऐसा कहकर लेखक ने समाज की किस विसंगति पर प्रकाश डाला है?
उत्तर-
जूता ‘धन और बल’ का प्रतीक है। जूता समाज में सदा से ही आदर पाता आया है। अर्थात् गुणवान व्यक्तियों को भी धनवानों के सामने कमतर आंका गया है। धनवानों ने ज्ञानी व्यक्तियों को भी झुकने पर विवश किया है। यह समाज की विसंगति ही है।
प्रश्न 7.
लेखक अपने जूते को अच्छा नहीं मानता वह अच्छा दिखता है, क्यों?
उत्तर-
लेखक का जूता ऊपर से अच्छा दिखता है पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। उसका अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है। और पैनी मिट्टी से रगड़कर लहूलुहान हो जाता है। ऐसे तो एक दिन पंजा ही छिल जाएगा इसलिए वह अपने जूते को अच्छा नहीं मानता है।
प्रश्न 8.
प्रेमचंद का जूता फटने के प्रति लेखक ने क्या-क्या आशंका प्रकट की है?
उत्तर-
प्रेमचंद का जूता फटने के प्रति लेखक ने दो आशंकाएँ प्रकट की हैं-
- बनिए के तगादे से बचने के लिए मील-दो मील का चक्कर प्रतिदिन लगाकर घर पहुँचना।
- सदियों से परत दर परत जमी किसी चीज़ पर ढोकर मार-मारकर जूता फाड़ लेना।
प्रश्न 9.
लेखक द्वारा कुंभनदास का उदाहरण किस संदर्भ में दिया गया है?
उत्तर-
लेखक का मानना है कि चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं, घिस जाता है। इसकी पुष्टि के लिए ही उन्होंने कुंभ दास का उदाहरण दिया है। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आते-जाते घिस गया था।
प्रश्न 10.
प्रेमचंद ऐसी वेष-भूषा में फ़ोटो खिंचाने को क्यों तैयार हो गए होंगे? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर-
प्रेमचंद मोटे कपड़े का कुरता-धोती और टोपी पहने फ़ोटो खिंचाने को इसलिए तैयार हो गए होंगे, शायद उनकी पत्नी ने आग्रह किया होगा जिसे वे टाल न पाए होंगे और ‘अच्छा, चल भई’ कहकर पत्नी के साथ फोटो खिंचाने बैठ गए होंगे।
प्रश्न 11.
यदि अन्य लोगों की तरह प्रेमचंद भी फ़ोटो का महत्त्व समझते तो क्या करते?
उत्तर-
यदि औरों की तरह प्रेमचंद भी फ़ोटो का महत्त्व समझते तो वे इस तरह के अत्यंत साधारण कपड़े और फटा जूता पहनकर फ़ोटो न खिंचाते। वे भी दूसरों की तरह फ़ोटो खिंचाने के लिए औरों से कपड़े-जूते आदि उधार माँग लेते।
प्रश्न 12.
लेखक ने सदियों से परत-दर-परत’ कहकर किस ओर इशारा किया है?
उत्तर
लेखक ने ‘सदियों से जमी परत पर परत’ कहकर समाज में फैली उन कुरीतियों, रूढ़ियों और बुराइयों की ओर संकेत किया है जो समाज में पुराने समय से चली आ रही हैं और लोग बिना सोचे-समझे इन्हें अपनाए हुए हैं। इनकी जड़े समाज में इतनी गहराई से जम चुकी हैं कि ये सरलता से दूर नहीं की जा सकती।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के आधार पर प्रेमचंद की वेशभूषा एवं उनकी स्वाभाविक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ से पता चलता है कि उच्च कोटि को साहित्यकार होने के बाद भी प्रेमचंद साधारण-सा जीवन “: “बिता रहे थे। वे मोटे कपड़े का कुरता-धोती और टोपी पहनते थे। उनके जूतों के बंद बेतरतीब बँधे रहते थे। इसके बाद भी प्रेमचंद को दिखावा एवं आडंबर से परहेज था। वे जिस हाल में थे, उसी में खुश थे और उसी रूप में दिखने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती थी। वे अपनी कमियों और कमजोरियों को छिपाना नहीं जानते थे।
प्रश्न 2.
लेखक ने प्रेमचंद को जनता के लेखक’ कहकर उनकी किस विशेषता को बताना चाहा है?
उत्तर-
प्रेमचंद अपने युग के महान कथाकार और उपन्यासकार थे। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने से उन्होंने खुद गरीबी
एवं दुख को अत्यंत निकट से देखा था। इसके अलावा प्रेमचंद पराधीन भारत में भारतीय किसानों और मजदूरों के प्रति अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार को देखा था। वे समाज में व्याप्त रूढ़ियों, कुरीतियों और धार्मिक बुराइयों में फंसे लोगों को देख रहे थे। इन्हीं बातों को उन्होंने अपनी कृतियों का विषय बनाया है। पूस की रात’ में हलकू की समस्या, ‘गोदान’ .. में होरी की दुर्दशा, ‘मंत्र’ में डाक्टर चट्ढा की खेलप्रियता से सुजानभगत के बेटे की मृत्यु आदि का सजीव चित्रण करके जन सामान्य के दुख को मुखरित किया है। लेखक ने ‘जनता का लेखक’ कहकर जनसाधारण के प्रति उनके लगाव को बताना चाहा है।
प्रश्न 3.
लेखक ने प्रेमचंद की दशा का वर्णन करते-करते अपने बारे में भी कुछ कहकर लेखकों की स्थिति पर प्रकाश डाला है। ‘प्रेमचंद’ और लेखक ‘परसाई’ में आपको क्या-क्या समानता-विषमता दिखाई देती है? लिखिए।
उत्तर-
लेखक परसाई द्वारा लिखित पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ में प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकार, जिसे ‘युग प्रवर्तक’, ‘महान कथाकार’, ‘उपन्यास सम्राट’ आदि के रूप में जाना जाता है, की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न थी। उनकी फटे जुते से अँगुली बाहर निकल आई थी। कुछ ऐसी समान स्थिति लेखक परसाई के जूते की भी थी। उनके जूते का अँगूठे के नीचे का तला फटा था, जिससे अँगूठा जमीन में रगड़कर घायल हो जाता था। इस स्थिति में उसके जूते का तला निकलकर उसके पूरे पंजे को घायल कर देता था।
प्रेमचंद और लेखक में अंतर यह था कि इस हाल में भी जहाँ प्रेमचंद मुसकराते हुए फ़ोटो खिंचा लिए, लेखक ऐसा कभी न कर पाता।
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