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Class IX_kshitij (पद्य भाग)_Ncert

 पाठ 1- साखियाँ 

प्रश्न 1.
‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
मानसरोवर के दो अर्थ हैं-

  • एक पवित्र सरोवर जिसमें हंस विहार करते हैं।
  • पवित्र मन या मानस।

प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर-
कवि ने सच्चे प्रेमी की यह कसौटी बताई है कि उसका मन विकारों से दूर तथा पवित्र होता है। इस पवित्रता का असर मिलने वाले पर पड़ता है। ऐसे प्रेमी से मिलने पर मन की पवित्रता और सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
उत्तर-
इस दोहे में अनुभव से प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान को महत्त्व दिया गया है।

प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
उत्तर-
इस संसार में सच्चा संत वही है जो जाति-धर्म, संप्रदाय आदि के भेदभाव से दूर रहता है, तर्क-वितर्क, वैर-विरोध और राम-रहीम के चक्कर में पड़े बिना प्रभु की सच्ची भक्ति करता है। ऐसा व्यक्ति ही सच्चा संत होता है।

प्रश्न 5.
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर-
अंतिम दो दोहों में कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है-

  1. अपने-अपने मत को श्रेष्ठ मानने की संकीर्णता और दूसरे के धर्म की निंदा करने की संकीर्णता।
  2. ऊँचे कुल के अहंकार में जीने की संकीर्णता।

प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
किसी व्यक्ति की पहचान उसके कर्म से होती है, कुल से नहीं। कोई व्यक्ति यदि ऊँचे कुल में जन्म लेकर बुरे कर्म करता है तो वह निंदनीय होता है। इसके विपरीत यदि साधारण परिवार में जन्म लेकर कोई व्यक्ति यदि अच्छे कर्म करता है तो समाज में आदरणीय बन जाता है सूर, कबीर, तुलसी और अनेकानेक ऋषि-मुनि साधारण से परिवार में जन्मे पर अपने अच्छे कर्मों से आदरणीय बन गए। इसके विपरीत कंस, दुर्योधन, रावण आदि बुरे कर्मों के कारण निंदनीय हो गए।

प्रश्न 7.
काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भेंकन दे झख मारि।
उत्तर-

  • इसमें कवि ने एक सशक्त चित्र उपस्थित किया है। सहज साधक मस्ती से हाथी पर चढ़े हुए जा रहे हैं।
    और संसार-भर के कुत्ते भौंक-भौंककर शांत हो रहे हैं परंतु वे हाथी का कुछ बिगाड़ नहीं पा रहे। यह चित्र निंदकों पर व्यंग्य है और साधकों के लिए प्रेरणा है।
  • सांगरूपक अलंकार का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया गया है
    ज्ञान रूपी हाथी
    सहज साधना रूपी दुलीचा
    निंदक संसार रूपी श्वान
    निंदा रूपी भौंकना
  • ‘झख मारि’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग।
  • ‘स्वान रूप संसार है’ एक सशक्त उपमा है।

सबद (पद)

प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है?
उत्तर-
मनुष्य अपने धर्म-संप्रदाय और सोच-विचार के अनुसार ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, काबा, कैलाश जैसे पूजा स्थलों और धार्मिक स्थानों पर खोजता है। ईश्वर को पाने के लिए कुछ लोग योग साधना करते हैं तो कुछ सांसारिकता से दूर होकर संन्यासी-बैरागी बन जाते हैं और इन क्रियाओं के माध्यम से ईश्वर को पाने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर-
कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर ने मंदिर में है, न मसजिद में; न काबा में है, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में; वह न कर्मकांड करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से। ये सब ऊपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनमें मन लगाना व्यर्थ है।

प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में क्यों कहा है?
उत्तर-
कबीर का मानना था कि ईश्वर घट-घट में समाया है। वह प्राणी की हर साँस में समाया हुआ है। उसका वास प्राणी के मन में ही है।

प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर-
कबीर के अनुसार, जब प्रभु ज्ञान का आवेश होता है तो उसका प्रभाव चमत्कारी होता है। उससे पूरी जीवन शैली बदल जाती है। सांसारिक बंधन पूरी तरह कट जाते हैं। यह परिवर्तन धीरे-धीरे नहीं होता, बल्कि एकाएक और पूरे वेग से होता है। इसलिए उसकी तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से की गई है।

प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
ज्ञान की आँधी आने से भक्त के जीवन पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं-

  • भक्त के मन पर छाया अज्ञानता का भ्रम दूर हो जाता है।
  • भक्त के मन का कूड़ा-करकट (लोभ-लालच आदि) निकल जाता है।
  • मन में प्रभु भक्ति का भाव जगता है।
  • भक्त का जीवन भक्ति के आनंद में डूब जाता है।

प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) हिति चित्त की वै श्रृंनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
(ख) आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीनाँ।
उत्तर-
इसका भाव यह है कि ईश्वरीय ज्ञान हो जाने के बाद प्रभु-प्रेम के आनंद की वर्षा हुई। उस आनंद में भक्त का हृदय पूरी तरह सराबोर हो गया।




 पाठ 2- वाख 

1

रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव ।

जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।

पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।

जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।।

व्याख्या : कवयित्री कहती है कि वह अपने साँसों की कच्ची रस्सी की सहायता से इस शरीर-रूपी नाव को खींच रही है। पता नहीं ईश्वर मेरी पुकार सुनकर मुझे भवसागर से कब पार करेंगे। जिस प्रकार कच्ची मिट्टी से बने पात्र से पानी टपक-टपककर कम होता रहता है, उसी तरह समय बीतता जा रहा है और प्रभु को पाने के मेरे प्रयास व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं। कवयित्री के मन में बार-बार एक ही पीड़ा उठती है कि कब यह नश्वर संसार छोड़कर प्रभु के पास पहुँच जाए और सांसारिक कष्टों से मुक्ति पा सके।  


2

खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।

सम खा तभी होगा समभावी,

खुलेगी साँकल बंद द्वार की।


व्याख्या- कवयित्री मनुष्य को मध्यम मार्ग को अपनाने की सीख देती हुई कहती है कि हे मनुष्य! तुम इन सांसार की भोग विलासिताओं में डूबे रहते हो, इससे तुम्हें कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है। तुम इस भोग के खिलाफ यदि त्याग, तपस्या का जीवन अपनाओगे तो मन में अहंकार ही बढ़ेगा। तुम इनके बीच का मध्यम मार्ग अपनाओ। भोग-त्याग, सुख-दुख के मध्य का मार्ग अपनाने से ही प्रभु-प्राप्ति का बंद द्वार खुलेगा और प्रभु से मिलन होगा। 


 3

आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।

सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!

जेब टटोली, कौड़ी न पाई।

माझी को दूँ, क्या उतराई?

 

व्याख्या- कवयित्री कहती है कि प्रभु की प्राप्ति के लिए वह संसार में सीधे रास्ते से आई थी किंतु यहाँ आकर मोहमाया आदि सांसारिक उलझनों में फंसकर अपना रास्ता भूल गई। वह जीवन भर सुषुम्ना नाड़ी के सहारे कुंडलिनी जागरण में लगी रही और इसी में जीवन बीत गया। जीवन के अंतिम समय में जब उसने जेब में खोजा तो कुछ भी हासिल न हुआ। अब उसे चिंता सता रही है कि भवसागर से पार उतारने वाले प्रभु रूपी माँझी को उतराई (किराया) के रूप में क्या देगी। अर्थात् वह जीवन में कुछ न हासिल कर सकी। 


 4

थल-थल में बसता है शिव ही,

भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।

ज्ञानी है तो स्वयं को जान,

वही है साहिब से पहचान।


व्याख्या- ईश्वर की सर्वत्र (सभी जगह) उपस्थिति के बारे में बताती हुई कवयित्री कहती है कि वह हर स्थान पर व्याप्त है। हे मनुष्य! तू धार्मिक आधार पर हिंदू-मुसलमान का भेदभाव त्यागकर उसे अपना ले। ईश्वर को जानने से पहले तू खुद को पहचान, अपना आत्म-ज्ञान कर, इससे प्रभु से पहचान आसान हो जाएगी। अर्थात् ईश्वर ही तो आत्मा रूप में हम सभी में निवास करता है। 



प्रश्न-उत्तर 

प्रश्न 1.
‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
उत्तर-
‘रस्सी’ शब्द जीवन जीने के साधनों के लिए प्रयुक्त हुआ है। वह स्वभाव में कच्ची अर्थात् नश्वर है।

प्रश्न 2.
कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर-
कवयित्री देखती है कि दिन बीतते जाने और अंत समय निकट आने के बाद भी परमात्मा से उसका मेल नहीं हो पाया है। ऐसे में उसे लगता है कि उसकी साधना एवं प्रयास व्यर्थ हुई जा रही है।

प्रश्न 3.
कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
परमात्मा से मिलना।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर-
(क) “जेब टाटोली कौड़ी न पाई’ का भाव यह है कि सहज भाव से प्रभु भक्ति न करके कवयित्री ने हठयोग का सहारा लिया। इस कारण जीवन के अंत में कुछ भी प्राप्त न हो सका।

(ख) भाव यह है कि मनुष्य को संयम बरतते हुए सदैव मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। अधिकाधिक भोग-विलास में डूबे रहने से मनुष्य को कुछ नहीं मिलता है और भोग से पूरी तरह दूरी बना लेने पर उसके मन में अहंकार जाग उठता है।

प्रश्न 5.
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललयद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर-
ललद्यद ने सुझाव दिया है कि भोग और त्याग के बीच संतुलन बनाए रखो। न तो भोगों में लिप्त रहो, न ही शरीर को सुखाओ; बल्कि मध्यम मार्ग अपनाओ। तभी प्रभु-मिलन का द्वार खुलेगा।

प्रश्न 6.
ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
उत्तर-
उपर्युक्त भाव प्रकट करने वाली पंक्तियाँ हैं-
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
मांझी को क्या दें, क्या उतराई ?

प्रश्न 7.
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय है-जिसने परमात्मा को जाना हो, आत्मा को जाना हो।

प्रश्न 8.
हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है-
(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर-
(क) हमारे समाज में जाति-धर्म, भाषा, संप्रदाय आदि के नाम पर भेदभाव किया जाता है। इससे समाज और देश को बहुत हानि हो रही है। इससे समाज हिंदू-मुसलमान में बँटकर सौहार्द और भाई-चारा खो बैठा है। दोनों एक-दूसरे के शत्रु से नजर आते हैं। त्योहारों के समय इनकी कट्टरता के कारण किसी न किसी अनहोनी की आशंका बनी। रहती है। इसके अलावा समय-असमय दंगे होने का भय बना रहता है। इससे कानून व्यवस्था की समस्या उठ खड़ी होती है तथा विकास पर किया जाने वाला खर्च अकारण नष्ट होता है।

(ख) आपसी भेदभाव मिटाने के लिए लोगों को सहनशील बनना होगा, सर्वधर्म समभाव की भावना लानी होगी तथा कट्टरता त्याग कर धार्मिक सौहार्द का वातावरण बनाना होगा। सभी धर्मों के अनुयायियों के साथ समानता का व्यवहार करना होगा तथा वोट की खातिर किसी धर्म विशेष का तुष्टीकरण बंद करना होगा ताकि अन्य धर्मानुयायियों को अपनी उपेक्षा न महसूस हो।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 9.
भक्तिकाल में ललद्द्यद के अतिरिक्त तमिलनाडु की आंदाल, कर्नाटक की अक्क महादेवी और राजस्थान की मीरा जैसी भक्त कवयित्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए एवं उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 10.
ललयद कश्मीरी कवयित्री हैं। कश्मीर पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
कश्मीर हमारे देश के उत्तरी भाग में स्थित है। यह पर्वतीय प्रदेश है। यहाँ का भू–भाग ऊँचा-नीचा है। कश्मीर के ऊँचे पहाड़ों पर सरदियों में बरफ़ पड़ती है। यह सुंदर प्रदेश हिमालय की गोद में बसा है। अपनी विशेष सुंदरता के कारण यह मुगल बादशाहों को विशेष प्रिय रहा है। मुगल सम्राज्ञी ने उसकी सुंदरता पर मुग्ध होकर कहा था, ‘यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है।’

कश्मीर में झेलम, सिंधु आदि नदियाँ बहती हैं जिससे यहाँ हरियाली रहती है। यहाँ के हरे-भरे वन, सेब के बाग, खूबसूरत घाटियाँ, विश्व प्रसिद्ध डल झील, इसमें तैरते खेत, शिकारे, हाउसबोट आदि सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देखने के लिए देश से नहीं वरन विदेशी पर्यटक भी आते हैं। पर्यटन उद्योग राज्य की आमदनी में अपना विशेष योगदान देता है। वास्तव में कश्मीर जितना सुंदर है उतने ही सुंदर यहाँ के लोग भी हैं। ये मृदुभाषी हँसमुख और मिलनसार प्रकृति के हैं। कश्मीर वासी विशेष रूप से परिश्रमी होते हैं। वास्तव में कश्मीर धरती का स्वर्ग है।



पाठ 3 सवैये 


 मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।

पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।

जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।।


भावार्थ-कृष्ण की लीला भूमि ब्रज के प्रति अपना लगाव प्रकट करते हुए कवि कहता है कि अगले जन्म में यदि मैं मनुष्य बनूँ तो गोकुल गाँव के ग्वाल बालों के बीच ही निवास करूँ। यदि मैं पशु बनूँ तो इसमें मेरा कोई जोर (वश) नहीं है फिर भी मैं नंद बाबा की गायों के बीच चरना चाहता हूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ तो उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहता हूँ, जिसे कृष्ण ने अपनी उँगली पर उठाकर लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। यदि मैं पक्षी बन जाऊँ तो में उसी कदंब के पेड़ पर एक आश्रय बनाऊंगा जो यमुना के तट पर है और जिसके नीचे श्रीकृष्ण रास रचाया करते थे। 


या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।

आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ।। 

रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं। 

कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।


भावार्थ– कृष्ण से जुड़ी वस्तुओं के प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हुए कवि कहता है कि जिस लाठी और कंबल को लेकर कृष्ण गाय चराया करते थे उसके बदले में तीनों लोकों का सुख त्यागने को तैयार हूँ। मैं नंद की गायों को चराने के बदले आठों सिद्धियों और नौ निधियों का सुख भी भूल सकता हूँ। मैं ब्रजभूमि पर स्थित बागों, वनों, तालाबों को देखते रहना चाहता हूँ। मैं इन करील के कुंजों में रहने के बदले हजारों सोने के महलों का सुख त्यागने को तैयार हूँ। 


मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी। 

ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।

भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।

या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।। 


भावार्थ-कृष्ण के सौंदर्य पर मुग्ध एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी! मैं कृष्ण की तरह ही अपने सिर पर मयूर के पंखों का मुकुट तथा गले में गुंज की माला पहनूँगी। मैं पीले वस्त्र धारण कर श्रीकृष्ण की तरह ही गायों को पीछे लाठी लेकर वन-वन फिरूँगी। मेरे कृष्ण को जो भी अच्छा लगता है मैं उनके कहने पर सब कुछ करने को तैयार हूँ पर हे सखी! कृष्ण की उस मुरली को मैं अपने होंठों पर कभी भी न रखूगी। क्योंकि उस मुरली ने ही कृष्ण को हमसे दूर कर रखा है। 


काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।

मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै।।

टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।

माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।। 


भावार्थ-श्रीकृष्ण की मुरली की ध्वनि तथा उनकी मुस्कान पर मोहित एक गोपी कहती है कि जब श्रीकृष्ण मधुर स्वर में मुरली बजाएँगे तब मैं अपने कानों में अँगुली डाल लूँगी ताकि मैं उसे न सुन सकूँ। ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं पर चढ़कर कृष्ण गोधन गाते हैं तो गाते रहें, मैं उससे बेअसर रहूँगी। मैं ब्रज के लोगों से चिल्लाकर कहना चाहती हूँ कि कल को मुझे कोई कितना भी समझाए पर श्रीकृष्ण की एक मुस्कान पर मैं अपने वश में नहीं रह सकूँगी। मुझ पर उस मुस्कान का जादू अवश्य चल जाएगा। 


पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?
उत्तर-
कवि को ब्रजभूमि से गहरा प्रेम है। वह इस जन्म में ही नहीं, अगले जन्म में भी ब्रजभूमि का वासी बने रहना चाहता है। ईश्वर अगले जन्म में उसे ग्वाला बनाएँ, गाय बनाएँ, पक्षी बनाएँ या पत्थर बनाएँ-वह हर हाल में ब्रजभूमि में रहना चाहता है। वह ब्रजभूमि के वन, बाग, सरोवर और करील-कुंजों पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को भी तैयार है।

प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?
उत्तर-
कवि का ब्रज के वन-बाग और तालाब निहारने का कारण यह है कि वह इन सबसे श्रीकृष्ण का जुड़ाव महसूस करता है। कवि श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त है। अपने आराध्य से जुड़ी वस्तुएँ उसे शांति और आनंद की अनुभूति कराती है।

प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है?
उत्तर-
कवि के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हैं-कृष्ण। इसलिए कृष्ण की एक-एक चीज़ उसके लिए महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि वह कृष्ण की लाठी और कंबल के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार है।

प्रश्न 4.
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सखी ने गोपी से कृष्ण का ठीक वैसा ही रूप धारण करने का अग्रह किया था जैसा कृष्ण दिखते थे। इसके लिए उसने सिर पर मोर पंखों को बना मुकुट, गले में गूंज की माला, शरीर पर पीला वस्त्र पहने और हाथ में लाठी लेने का अग्रह किया था।

प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर-
कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य इसलिए प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इन सबके साथ श्रीकृष्ण का जुड़ाव किसी न किसी रूप में रहा था।

प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?
उत्तर-
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आपको इसलिए विवश पाती हैं क्योंकि श्रीकृष्ण की मुसकान अत्यंत आकर्षक है। इस मुसकान के आकर्षण से बच पाना उनके लिए कठिन हो जाता है। इस मुसकान के कारण वे अपने तन-मन पर अपना नियंत्रण नहीं रख पाती है।

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर-
(क) रसखान ब्रजभूमि से इतना प्रेम करते हैं कि वे वहाँ के काँटेदार करील के कुंजों के लिए करोड़ों महलों के सुखों को भी न्योछावर करने को तैयार हैं। आशय यह है कि वे महलों की सुख-सुविधा त्यागकर भी उस ब्रजभूमि पर रहना पसंद करते हैं।

(ख) एक गोपी कृष्ण की मधुर-मोहिनी मुसकान पर इतनी मुग्ध है कि उससे कृष्ण की मोहकता झेली नहीं जाती। वह पूरी तरह उस पर समर्पित हो गई है।

प्रश्न 8.
‘कालिंदी कुल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
या मुरली मुरलीधर की अधरा न धरी अधरा न धरौंगी।।
उत्तर-
इसमें यमक अलंकार का सौंदर्य है। ‘मुरली मुरलीधर’ में सभंग यमक है। ‘अधरान’ धरी ‘अधरा न’ में भी सभंग यमक है।

अधरान = अधरों पर
अधरा न = होठों पर नहीं।
अनुप्रास अलंकार का सौंदर्य भी देखते बनता है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर-
छात्र अध्यापक की मदद से स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 12.
सूरदास द्वारा रचित कृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी पदों को पढ़िए।
उत्तर-
छात्र स्वयं पढ़ें।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रसखान अगले जन्म में मनुष्य बनकर कहाँ जन्म लेना चाहते थे और क्यों ?
उत्तर-
रसखान अगले जन्म में मनुष्य बनकर ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में जन्म लेना चाहते थे क्योंकि ब्रज उनके आराध्य श्रीकृष्ण की लीला भूमि रही है। ब्रज क्षेत्र में जन्म लेकर वह श्रीकृष्ण से जुड़ाव की अनुभूति करता है।

प्रश्न 2.
रसखान ने ऐसा क्यों कहा है, ‘जो पसु हौं तो कहा बस मेरो’?
उत्तर-
‘जौ पसु हाँ तो कहा बस मेरो’ कवि रसखान ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि पशु की अपनी इच्छा नहीं चलती है। कोई भी उसके गले में रस्सी डालकर कहीं भी ले जा सकता है। उसकी इच्छा-अनिच्छा का कोई महत्व नहीं रहती है।

प्रश्न 3.
कवि किस गिरि का पत्थर बनना चाहते हैं और क्यों?
उत्तर-
कवि गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहता हैं क्योंकि इंद्र के प्रकोप और क्रोध से ब्रजवासियों को मचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को छाते की तरह उठाकरे श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी। गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनकर कवि श्रीकृष्ण से जुड़ाव महसूस करता है।

प्रश्न 4.
‘कालिंदी कुल कदंब की डारन’ का भाव स्पष्ट करते हुए बताइए कि कवि ने इसका उल्लेख किस संदर्भ में किया
उत्तर-
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ का भाव है-यमुना नदी के किनारे स्थित कदंब की डालों पर बसेरा बनाना। कवि ने। इसका उल्लेख अगले जन्म में पक्षी बनकर श्रीकृष्ण से जुड़ी वस्तुओं का सान्निध्य पाने के संदर्भ में किया है।

प्रश्न 5.
गोपी किस तरह के वस्त्र धारण करना चाहती है और क्यों?
उत्तर-
गोपियाँ पीले रंग के वैसे ही वस्त्र पहनना चाहती है जैसा श्रीकृष्ण पहना करते थे क्योंकि वह श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य पर मोहित है और वैसा ही रूप बनाना चाहती है।

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण की मुसकान का गोपियों पर क्या असर होता है?
उत्तर-
श्रीकृष्ण की मुसकान अत्यंत आकर्षक एवं मादक है। गोपियाँ इस मुसकान को देखकर अपनी सुध-बुध खो बैठती हैं। उनका खुद अपने तन-मन पर नियंत्रण नहीं रह जाता है। वे विवश होकर स्वयं को नहीं सँभाल पाती हैं।

प्रश्न 7.
गोपियाँ ब्रज के लोगों से क्या कहना चाहती हैं और क्यों ?
उत्तर-
गोपियाँ ब्रज के लोगों से यह कहना चाहती हैं कि कृष्ण के प्रभाव से बचने के लिए कानों में अँगुली रख लेंगी तथा उनके गोधन को नहीं सुनेंगी पर श्रीकृष्ण की मुसकान देखकर वह स्वयं को नहीं सँभाल पाएंगी और तन-मन पर वश नहीं रहेगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण और उनसे जुड़ी वस्तुओं का सान्निध्य पाने के लिए कवि क्या-क्या त्यागने को तैयार है?
उत्तर-
रसखान श्रीकृष्ण के प्रति अगाध आस्था और लगाव रखते हैं। वे अपने आराध्य से जुड़ी हर वस्तु से प्रेम करते हैं। इन वस्तुओं को पाने के लिए वे अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार हैं। वे लकुटी और कंबल के बदले तीनों लोकों का राज्य, उनकी गाएँ चराने के बदले आठों सिधियाँ और नवों निधियों का सुख छोड़ने को तैयार हैं। श्रीकृष्ण जिन करील के कुंजों की छाया में मुरली बजाते हुए विश्राम किया करते थे उन कुंजों की छाया पाने के लिए कवि सोने के सैकड़ों महलों का सुख छोड़ने को तैयार है।

प्रश्न 2.
‘ब्रज के बन-बाग, तड़ाग निहारौं’ का अशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर-
ब्रजे के बन-बाग और तड़ाग देखने का आशय है-ब्रजभूमि पर स्थित उन बन-बाग और तालाबों को निहारते रहना जहाँ श्रीकृष्ण गाएँ चराया करते थे और विश्राम किया करते थे। कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि कवि रसखान श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त है। वह श्रीकृष्ण से ही नहीं वरन उनसे जुड़ी हर वस्तु से अत्यधिक लगाव रखता है। इन वस्तुओं को पाने के लिए वह अपना हर सुख त्यागने को तैयार है। यह श्रीकृष्ण के प्रति कवि की भक्ति भावना की पराकाष्ठा है।

प्रश्न 3.
‘या मुरली मुरलीधर की अधरा न धरी अधरा न धरौंगी’ का भाव स्पष्ट करते हुए बताइए कि गोपी ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर-
भाव यह है कि गोपी श्रीकृष्ण का रूप बनाने के लिए उनकी हर वस्तु धारण करने को तैयार है पर उनकी मुरली नहीं, क्योंकि गोपी मुरली से ईर्ष्या भाव रखती है। इसी मुरली ने गोपियों को कृष्ण से दूर कर रखा है। कृष्ण के होठों से लगकर मुरली गोपियों की व्यथा बढ़ाती है।

 पाठ 12- कैदी और कोकिला 

प्रश्न 1: कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी?

उत्तर : आधी रात को कोयल की कूक सुनकर कवि को यह लगा कि वह उसे कुछ कहना चाहती है। कोयल या तो उसे (कैदी या कवि) लगातार लड़ते रहने की प्रेरणा देना चाहती है या उसकी यातनाओं से मिलने वाले दर्द को बाँटना चाहती है। उसे लगता है कि कोकिल कवि के दुखों को देखकर अपने आँसू बहा रही है और चुपचाप अँधेरे को बेधकर विद्रोह की चेतना जगा रही है।

प्रश्न 2: कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई?

उत्तर : कवि ने कोकिल के बोलने पर निम्नलिखित कारणों की संभावना जताई है-

  • कोयल जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों को देशवासियों की दुर्दशा के बारे में बताने आयी है।
  • कोयल कैद हुए स्वतंत्रता सेनानियों को धैर्य बँधाने एवं दिलासा देने आई है।
  • कोयल कैद हुए स्वतंत्रता सेनानियों के दुखों पर मरहम लगाने आई है।
  • कोयल पागल हो गई है जो आधी रात में चीख रही है।

प्रश्न 3 : किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है और क्यों?

उत्तर : पराधीन भारत में ब्रिटिश शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है क्योंकि ब्रिटिश शासक बेकसूर भारतीयों पर घोर अत्याचार कर रहे थे। उन्होंने जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों को तरह-तरह की यातनाएँ दीं। उन्हें कोल्हू के बैल की तरह जोता गया।

प्रश्न 4 : कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर : पराधीन भारत के समय के जेलों में भारतवासियों को पशुओं की भाँति-रखा जाता था। उन्हें इस प्रकार की यातनाएँ दी जाती थीं कि सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • उन्हें ऊँची-ऊँची दीवारों वाली जेलों में कैद कर के रखा जाता था।
  • उन्हें दस फुट की छोटी-छोटी कोठरियों में कैद कर के रखा जाता था।
  • उन्हें भरपेट खाने के लिए खाना भी नहीं दिया जाता था।
  • उनके साथ पशुओं-सा व्यवहार किया जाता था।
  • उन्हें बात-बात पर सिर्फ गालियाँ ही दी जाती थीं।
  • उन्हें तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था।

प्रश्न 5 : भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) मृदुल वैभव की रखवाली-सीकोकिल बोलो तो!

(ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआखाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।

उत्तर :

(क) कवि के अनुसार, संसार में दुख-ही-दुख हैं, यदि कहीं पर कुछ मृदुलता और सरसता बची भी है तो वह कोयल के मधुर स्वर में ही बची है। अतः कोयल मृदुलता भरे स्वरों की रखवाली करने वाली है। कवि  कोयल से पूछते है कि आखिर वह जेल में अपना मधुर स्वर गुँजाकर उसे क्या कहना चाहती है!

(ख) इसमें  ब्रिटिश शासन की असहनीय यातनाएँ झेलता हुआ कवि स्वाभिमानपूर्वक कहता है कि वह अपने पेट पर कोल्हू का जूआ बाँधकर चरसा चला रहा है। इससे यह आशय है कि उनसे पशुओं जैसा सख्त काम कराया जा रहा है, फिर भी वह हार नहीं मान रहे है। जिसके कारण ब्रिटिश सरकार की अकड़ ढीली पड़ती जा रही है। यह सब देखकर अब अंग्रेज़ों को समझ आ गया है कि अब इन सेनानियों पर अत्याचार करने से भी वे सफल नहीं हो सकते है।

प्रश्न 6 : अर्धरात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है?

उत्तर : आधी रात में कोयल की चीख सुनकर कवि को यह अंदेशा होता है कि उसने भारतीयों के अंदर उपस्थित आक्रोश एवं असंतोष की ज्वाला को देख लिया होगा। यह ज्वाला जंगल में लगने वाली आग के समान भयंकर रही होगी। कोयल उसी ज्वाला (क्रांति) की सूचना देने के लिए जेल परिसर के पास आई है।

प्रश्न 7 : कवि को कोयल से ईष्या क्यों हो रही है?

उत्तर : कवि को कोयल से इसलिए ईर्ष्या हो रही है क्योंकि कोयल स्वतंत्र होकर आकाश में उड़ रही है, जबकि कवि जेल में बंदी है। कोयल पेड़ों की टहनियों में बैठकर हरियाली का आनंद ले रही है, जबकि कवि दस फुट की काल कोठरी में जीने के लिए विवश है। कोयल के सुरीले गीत की सभी सराहना करते हैं, जबकि कवि के लिए रोना भी गुनाह हो गया है।

प्रश्न 8 : कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कौन सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैंजिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है?

उत्तर : कवि के स्मृति पटल पर कोयल का यूँ असमय अत्यंत मधुर स्वर में गीत गाना विचित्र सा लग रहा है।  जिन्हें अब वह नष्ट करने पर तुली है।

प्रश्न 9 : हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है?

उत्तर : पं. माखनलाल चतुर्वेदी क्रांतिकारी कवि थे, उन्होनें स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए स्वयं से प्रेरणा प्राप्त करके संघर्ष का मार्ग अपनाया था। वे जेल को अपना प्रिय आवास मानते थे तथा हथकड़ियों को गहना समझते थे। उन्हें कभी भी किसी गलत कार्य के लिए हथकड़ी नहीं पहननी पड़ी। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के महान उद्देश्य के लिए हथकड़ियाँ स्वीकार कीं, अतः उनसे उनका गौरव और भी बढ़ा। समाज ने उन्हें उन हथकड़ियों के लिए प्रतिष्ठा प्रदान की। इसलिए उन्होंने हथकड़ियों को गहना कहा।

प्रश्न 10 : ‘काली तू …. ऐ आली!’-इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।

उत्तर : ‘काली तू … ऐ आली!’ इन पंक्तियों में काली शब्द की आवृत्ति बार-बार हुई है। इस शब्द का अर्थ भी उसके संदर्भानुसार है। संदर्भ के अनुसार काली शब्द के निम्नलिखित अर्थ हैं-

  • हथकड़ियाँ, रात, कोयल आदि का रंग काला बताने के लिए।
  • अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कारनामों को बताने के लिए।
  • पराधीन भारतीयों के भविष्य को अंधकारमय बताने के लिए।
  • अंग्रेज़ों के प्रति भारतीयों के मन में उठने वाले आक्रोश के संबंध में।

 पाठ 12- कैदी और कोकिला  (भावार्थ)

(1)

क्या गाती हो?

क्यों रह-रह जाती हो?

कोकिल बोलो तो!

क्या लाती हो?

संदेशा किसका है?

कोकिल बोलो तो!

भावार्थ :- उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने कारागार (जेल) में बंद स्वतंत्रता सेनानियों की मनोस्थिति   और पीड़ा को दर्शाया है। जब कवि रात के घोर अंधेरे में कारागृह के ऊपर एक कोयल को गीत गाते हुए सुनते है, तब कवि के मन में कई प्रकार के भाव एवं प्रश्न उत्पन्न होने लगते हैं। उन्हे ऐसा प्रतीत होता है कि कोयल उनके लिए कोई प्रेरणा के स्रोत से भरा हुआ संदेश लेकर आयी है।

कवि अपने मन में उपस्थित सभी प्रश्न कोयल से पूछ देते है कि कोयल! तुम क्या गा रही हो? फिर गाते-गाते तुम बीच-बीच में चुप क्यों हो जाती हो। कवि कोयल से कहते है – हे कोयल! ज़रा तुम बताओ तो, क्या मेरे लिए कोई संदेश लेकर आयी हो? यदि किसी प्रकार का संदेश लेकर तुम हमारे लिए आयी हो, तो उसे कहते हुए बार-बार चुप क्यों हो जा रही हो और यह संदेश तुम्हें कहाँ से प्राप्त हुआ है, ज़रा मुझे भी तो बताओ।

(2)

ऊँची काली ___________ क्यूँ आली?

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अंग्रेज़ों द्वारा किए गए अत्याचार एवं उनके काले कारनामों को जनता के सामने प्रस्तुत किया है। पराधीन भारत में, जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी और उनके ऊपर होने वाले अत्याचार एवं अपनी दयनीय स्थिति का वर्णन करते हुए कहते है कि उन्हें जेल के अंदर अंधेरे में काली और ऊँची दीवारों के बीच में डाकू, चोरों-उचक्कों के साथ रहना पड़ रहा है। जहाँ उन सेनानियों के साथ कोई मान सम्मान नहीं होता है। 

उन्हें जीवन व्यतीत करने के लिए पेट-भर खाना भी नहीं दिया जाता और ना ही उन्हें मरने दिया जाता है। यानि कि उन कैदियों को तड़पा-तड़पा कर जीवित रखना ही प्रशासन का उद्देश्य है। इस प्रकार उनकी पूरी स्वतंत्रता ही उनसे छीन ली गई है और उनके ऊपर हर समय कड़ा पहरा लगा होता है।

उन कैदियों के साथ अंग्रेजी शासन बहुत अन्याय कर रहे है, अंग्रेज़ों के शासनकाल में जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी को आकाश में भी घनघोर अंधकार रूपी निराशा दिख रही है, जहाँ न्याय रूपी चंद्रमा का थोड़ा-सा भी प्रकाश उपस्थित नहीं है। इसलिए स्वतंत्रता सेनानी के माध्यम से कवि कोयल से पूछते है – हे कोयल! इतनी रात को तुम क्यों जाग रही हो और दूसरों को क्यों जगा रही हो ? क्या तुम कोई संदेश लेकर आयी हो?

(3)

क्यों हूक पड़ी?_________________ कोकिल बोलो तो!

भावार्थ :- इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल की आवाज में उपस्थित दर्द  को महसूस कर रहे थे कि शायद कोयल को भी जेल में बंद भारतीयों की वेदनाओं का एहसास रहा था। उसे ऐसा लगता है कि कोयल ने अँग्रेज़ सरकार द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देख लिया है। इसीलिए उसके कंठ से मीठी एवं मधुर ध्वनि की जगह वेदना के स्वर सुनाई पड़ रहे है, जिसमें कोयल के दर्द की हूक शामिल है। कवि के अनुसार कोयल अपनी वेदना सुनाना चाहती है।

इसीलिए कवि कोयल से पूछ रहे है – कोयल! तुम बताओ तो मुझे कि तुम्हारा क्या लूट गया है, जो तुम्हारे गले से वेदना की ऐसी हूक सुनाई दे रही है? कोयल तो अपनी सबसे मीठी एवं सुरीली आवाज के लिए सभी जगह विख्यात है, जिसे गाते हुए सुनकर कोई भी मनुष्य कहीं भी प्रसन्न हो जाता है। लेकिन जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी को कोयल की आवाज़ न ही सुरीली और न ही मीठी लगी, बल्कि उसे कोयल की आवाज़ में वेदना और दुःख की अनुभूति हुई। इसीलिए वह व्याकुल हो गए और कोयल से बार-बार प्रश्न पूछने लगे कि बताओ कोयल तुम्हारे ऊपर क्या विपदा आई है?

(4)

क्या हुई _____________________ बोलो तो!

भावार्थ :-कवि इस पंक्ति के माध्यम से यह बताना चाह रहे है कि जेल में उपस्थित स्वतंत्रता सेनानी को कोयल का इस प्रकार आधी रात के अंधकार में गाना (चीखना), बड़ा ही अस्वाभाविक लग रहा है। इसी कारण कवि उस कोयल को बावली कहते हुए उससे पूछ रहे है कि तुम्हें क्या हुआ है? तुम इस तरह आधी रात में क्यों चीख रही हो? क्या तुमने जंगल में लगी हुई आग देख ली है? यहाँ पर कवि ने जंगल की भयावह आग के रूप में अंग्रेज़ी सरकार की यातनाओं की तरफ इशारा किया है। उन्हें ऐसा लग रहा है कि कोयल ने अंग्रेज़ी सरकार की हैवानियत देख ली है, इसलिए वह चीख-चीख कर ये बात सबको बता रही है।

(5)

क्या? –देख न  _____________________ रही आली?

भावार्थ :– प्रस्तुत पंक्ति द्वारा कवि को यह लगता है कि कोयल उसे जंजीरों में बंधा हुआ देखकर चीख पड़ी है। इसलिए कैदी कोयल से कहता है – क्या आप हमें इस प्रकार जंजीरों में लिपटा हुआ नहीं देख सकती? अरे, यह तो एक गहना है जो अंग्रेजी सरकार द्वारा दिया गया है।

अब तो कोल्हू के चलने की आवाज भी हमारे जीवन का प्रेरणा-गीत बन गया है। दिन-भर इस पत्थर को तोड़ते-तोड़ते हम उन सभी पत्थरों पर अपनी उंगलियों से भारत की स्वतंत्रता के गाने लिख रहे हैं। हम अपने पेट पर रस्सी बांध कर कोल्हू का चरखा चला-चला कर, ब्रिटिश सरकार की अकड़ के कुआँ को खाली कर रहे हैं।

अर्थात् हम इतनी यातनाएं सहने और भूखे रहने के बाद भी अंग्रेज़ी शासन के सामने नहीं झुक रहे हैं, जिससे उनकी अकड़ ज़रूर कम हो जाएगी। इसी वजह से हर दिन हमारे अंदर यातनाओं को सहने का आत्मबल आ जाता है, इसी आत्मबल के कारण हमारे अंदर न ही कोई करुणा उत्पन्न नहीं होती है और ना ही हम कभी रोते हैं। शायद तुम्हें यह बात पता चल गई है, इसीलिए शायद तुम मुझे रात में सांत्वना देने आयी हो। परन्तु, तुम्हारे इस वेदना भरे स्वर ने मेरे ऊपर ग़जब ढा दिया है और मेरे मन को व्याकुल कर दिया है।

(6)

इस शांत  _____________________________ बोलो तो!

भावार्थ :- आगे कवि कोयल से कहता है कि इस आधी-रात्रि में तुम अँधेरे को चीरते हुए इस तरह क्यों रो रही हो? हे कोयल तुम बोलो तो, क्या तुम हमारे अंदर उपस्थित विद्रोह की भावना को अंग्रेज़ी सरकार के ख़िलाफ़ जगाना चाहती हो? इस तरह कवि ने जेल में कैद एक स्वतंत्रता सेनानी के मन की दशा का वर्णन किया है कि किस प्रकार कोयल यह गीत गा-गा कर भारतीयों में देश-प्रेम एवं देशभक्ति की भावना को मजबूत बनाना चाहती है, ताकि वे अंग्रेजों द्वारा कैद किए गए स्वतंत्रता सेनानियों को मुक्ति दिला सकें।

(7)

काली तूरजनी_____________________________ ऐ आली!

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अंग्रेज़ी शासन-काल के दौरान चल रहे जेलों में बंद स्वतंत्रता सेनानियों के अत्याचार का वर्णन किया है। हमारे समाज में काले रंग को दुःख और अशांति माना गया है। इसीलिए कवि ने यहाँ पर काले रंग से हर एक चीज को दर्शाया है। कवि कैदी के माध्यम से कह रहा है कि कोयल तुम तो खुद ही काली हो, ये अंधेरी रात भी पूरी काली है और ठीक इसी तरह अंग्रेज़ी सरकार द्वारा की जाने वाली सभी करतूतें भी काली है और जेल की चारदीवारी के अंदर चलने वाली हवा भी काली है।

मैंने जो टोपी पहनी हुई है, जो कम्बल मैं ओढ़ता हूँ, जो लोहे की जंजीरें पहन रखी हैं, यह सब काली है और इसी वजह से हमारे अंदर उत्पन्न होने वाली कल्पनाएं भी काली हो गई हैं। अंग्रेजी सरकार की इतनी सारी यातनाओं को सहने के बाद भी हमें हमारे ऊपर पूरा दिन नजर रखने वाले पहरेदारों की हुंकार और गाली भी सुननी पड़ती हैं। जो किसी काले रंग के सांप की भाँति हमें डँसने को दौड़ती हैं।

(8)

इस काले ____________________________________ बोलो तो!

भावार्थ :- कवि यह बिल्कुल भी नहीं समझ पा रहा है कि कोयल आजाद होने के बाद भी इस अँधेरी आधी रात में कारागार के ऊपर मंडराकर अपनी मधुर आवाज़ में गीत क्यों गा रही है। क्या वह इस संकट में अपने आपको को इसलिए ले आयी है कि उसने मरने की सोच ली है। यदि वह कोयल यही सोच रही है तो उसका कोई लाभ होने वाला नहीं है। इसलिए कैदी कोयल से पूछ रहा है – हे कोयल!  बताओ तुम क्यों इस विपरीत परिस्थिति में भी आज़ादी की भावना को जगाने वाले गीत गा रही हो?

(9)

तुझे मिली __________________________ रणभेरी!

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने स्वतंत्र उड़ रहे कोयल एवं जेल में बंद कैदी की मनःस्थिति की तुलना बड़े ही मार्मिक ढंग से की है। जहाँ एक तरफ कोयल पूरी स्वतंत्रता के साथ किसी भी पेड़ की डाली में जाकर बैठ सकती है। किसी भी जगह पर वह विचरण कर सकती है और अपने पसंदीदा गीत गा सकती है। वहीँ दूसरी तरफ हम सभी स्वतंत्रता सेनानियों को  कैदी के रूप में अंधकार से भरी हुई 10 फुट की जेल की चारदीवारी है। जिसके अंदर ही हमें अपना जीवन व्यतीत करना है, हम वहाँ अपनी इच्छानुसार कुछ भी नहीं कर सकते है।

कोयल के मधुर गाने को सुनकर सभी लोग वाह-वाह की तरीफ़े करते हैं। वहीँ किसी कैदी के रोने पर कोई सुनता तक नहीं है। इस प्रकार, कैदी और कोयल की परिस्थिति में ज़मीन-आसमान का अंतर  है, परंतु फिर भी कोयल युद्ध का गीत क्यों गा रही है? कैदी कोयल से यही जानना चाहता है कि आखिर इस तरह कोयल को रहस्यमय ढंग से गाने का क्या मतलब है?

(10)

इस हुंकृति _____________________________ बोलो तो!

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कोयल और कैदी दोनों के अंदर उपस्थित  स्वतंत्रता की प्रबल भावना को दर्शाया है। जिस तरह कोयल अपने जोशीले गीत के माध्यम से देशवासियों के मन में विद्रोह की भावना को जागृत कर रही है, उसी तरह कैदी भी स्वंत्रता प्राप्ति के लिए लगातार अंग्रेज़ी सरकार की यातनायें सहन कर रहे है। इसीलिए कवि ने यहाँ कोयल के स्वर को कैदी के लिए आजादी का संदेश बताया है। जिसे सुनकर कैदी कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाए।

इसलिए इन पंक्तियों में कैदी कोयल से पूछ रहा है कि हे कोयल! तुम मुझे बताओ कि मैं गांधी जी द्वारा चलाये गए इस स्वतंत्रता संग्राम में किस तरह अपने प्राण झोंक दूँ? मैं तम्हारे संगीत को सुनकर अपनी रचनाओं के द्वारा क्रान्ति की ज्वाला भड़काने वाली अग्नि तो पैदा कर रहा हूँ, लेकिन तुम मुझे बताओ कि मैं देश की आज़ादी के लिए और क्या कर सकता हूँ?

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